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किसानोंकी पुकार

नोंके अपने दृष्टिकोणसे उनकी स्थितिका एक उचित विवरण है। उस विवरणमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग वह है जिसमें छः महीनेकी बेकारीका उल्लेख है। यह देशके अन्य भागोंके समान ही है। बहुत-से लोग अपने बेहद छोटे खेतोंमें छः महीने काम करते हैं और छः महीने अपने घरोंसे दूर कारखानोंमें मजदूरी करते हैं। ध्यानसे पढ़नेवाला पाठक यह अनुभव करेगा कि यह बेकारी स्वभावतः उनके दुःखोंकी कहानीमें प्रथम स्थानपर आती है। यह मुख्यतः उनकी ऊपर बताई गई अन्य कठिनाइयोंका भी कारण है। यदि उनको घरमें ही पूरे सालके लिए लगातार काम होता तो फिर उन्हें साहूकारकी शरण न लेनी पड़ती। यदि वे संकटमें काम चलानेके लिए कुछ भी बचा सकते तो उन्हें अपना पटसन दूसरोंकी मर्जीके मुताबिक नीचे मूल्योंपर न बेचना पड़ता। छ: महीने उद्योगरत रहनेसे वे अपने जीवनमें क्रान्ति ला सकते हैं।

लेकिन उनका कहना है कि वे सूत कातना नहीं जानते। वे चाहते हैं कि मैं कांग्रेस कार्यकर्त्ताओंको इस बातकी ओर ध्यान देनेके लिए कह दूँ। काश! मैं कांग्रेस कार्यकर्त्ताओंमें चरखके प्रति अपने-जैसा विश्वास तथा उत्साह भर सकता। निश्चय ही उन्हें जनताके प्रतिनिधि होनेके नाते देशमें घूम-फिरकर चरखेका सन्देश देना चाहिए। उन्हें देशवासियोंको यह सन्देश देते हुए तथा कातने के लिए प्रेरित करते हुए उनके विषयमें स्वतः ही बहुत-सी बातें मालूम हो जायेंगी तया वे उनके दुःख और सुख सभीमें शामिल हो सकेंगे। कांग्रेसी ग्रामोंपर टिड्डी दलकी तरह धावा नहीं कर सकते; बल्कि उन्हें ग्रामवासियोंके पास उनकी आवश्यकताओंको समझाने तथा उन्हें अपनी हालतको सुधारनेमें मदद देनके लिए सहृदय सन्देशवाहकोंकी तरह जाना चाहिए। यदि वे वहाँ सूत कातनेका प्रचार करनेके लिए जायें और तब उन्हें उसके बजाय अन्य किसी प्रकारकी सहायता देनेकी आवश्यकता जान पड़े तो मुझे किंचित्मात्र भी दुःख अथवा क्षोभ नहीं होगा। वे ग्रामोंमें सेवकोंके रूपमें जायें तथा रहें। मैं जिससे भी मिलता हूँ वही स्वीकार करता है कि ग्रामोंमें कार्य करना आवश्यक है। लेकिन वस्तुतः ऐसा करते बहुत कम लोग हैं। जो लोग ग्रामोंमें गये हैं उनमें अधिकांश लोग चरखेको सेवाका साधन मानते हैं। लेकिन गाँव तो ७ लाख हैं तथा हमारे पास समस्त भारतमें सच्चे ग्रामसेवक ७०० भी नहीं हैं। किसानोंका मानपत्र हमारे लिए एक फटकार तथा चेतावनी है। हम स्वराज्यकी बात तभी कर सकेंगे जब हमारे पास गाँवोंमें काम करनेवाले कार्यकर्ता खासी बड़ी संख्यामें होंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-५-१९२५