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९५. पत्र : जमनालाल बजाजको

शान्तिनिकेतन
ज्येष्ठ सुदी ७ [२९ मई, १९२५][१]

चि॰ जमनालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम कार्यसमितिकी बैठकमें आओगे ही और तब हम सारी बातें कर लेंगे, इस खयालसे लिखना मुल्तवी कर दिया था। तुम नहीं आये इसमें भी चिन्ताकी कोई बात नहीं हुई। गिरधारीके पत्रसे यह धारणा बन गई थी कि तुम अवश्य आओगे।

मेरी निगाह कालेजके लिए किसी योग्य मनुष्यकी खोजमें लगातार रहती है; पर कोई आँखपर ही नहीं चढ़ता। जुगलकिशोर[२] आ जायें तो एक तरहसे यह समस्या हल हो सकती है। वे चरित्रवान् तो हैं हीं। उनके गिडवानीको[३] लिखे गये पत्रोंसे मुझे पूरा सन्तोष नहीं हुआ है। अगर गिडवानी खुद आनेकी बात सोचें और आ सकें तब तो ठीक ही है। इस समय और कोई निगाहमें नहीं है। कोई दाक्षिणात्य मिल जाये तो अच्छा—यह खयाल बना ही रहता है।

क्या यह कालेजके उद्घाटनकी क्रिया जून महीनेमें ही सम्पन्नकी जानी चाहिए? मेरे जूनके अन्तिम दिन तो असममें जाने हैं। उसके बाद मुझे फौरन बिहार जाना होगा। लेकिन अगर असमसे वर्धा फौरन आना जरूरी हो तो वहाँ आकर तब बिहार जाऊँगा। मुझे बिहारमें एक महीना लग जायेगा। जबसे लोगोंको मेरे वर्धा आनेकी बात मालूम हुई है। वे मुझे तभीसे दूसरी जगहोंमें आने के लिए निमन्त्रित कर रहे हैं। नागपुर, अमरावती और अकोलासे पत्र आये हैं। मुझे ऐसा लगता है कि जहाँसे बुलावा आये वहाँ हो आना इष्ट है। मैं इस वर्ष अच्छी तरह भ्रमण करना अपना धर्म समझता हूँ। अगर ऐसा करूँ तो मध्य प्रदेशकी यात्राका कार्यक्रम तुम्हीं तैयार कर लो और चल सको तो शायद तुम्हारा साथ चलना भी उचित हो।

(१) मुझे वर्धा कब आना है?

(२) मध्यप्रदेशकी यात्रा करनी है या नहीं?

(३) यदि करनी है तो क्या तुम इसका कार्यक्रम तैयार करोगे और साथ चलोगे? इन प्रश्नोंका उत्तर देना।

अभी जल्दी आश्रममें आ सकूँगा, ऐसा नहीं दीखता। बंगालके बाद तुरन्त बिहार, मध्य प्रदेश वगैरामें जाना है। मैं यह दौरा खत्म हो जानेपर ही अर्थात् शायद सितम्बरमें वहाँ आ सकता हूँ।

  1. साधन-सूत्रके अनुसार।
  2. आचार्य जुगलकिशोर, जो बादमें विद्यापीठमें चले गये थे; आप कांग्रेसके महामन्त्री और उत्तर प्रदेश सरकारके मन्त्री भी रहे।
  3. डा॰ चौइथराम गिडवानी।