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पत्र : पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको

उसने मेरी पत्नीको बताया कि वह हमेशा उसी कपड़ेको पहने रहती है। जब उसे गंगामें स्नान करना होता है; तो प्रायः नंगे शरीरसे ही नहाती है और उसके बाद वही कपड़ा पहन लेती है। यह बहुत ही दुःखद तथ्य है। मैं आशा करता हूँ कि आप लोग ऐसी घटनाओंकी पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे।

महात्माजीने बहनोंसे बहुत ही प्रभावशाली स्वरमें अपील की कि यदि आप रामराज्यको स्थापना करना चाहती हैं तो आपको सीताजीका सोत्साह अनुकरण करना चाहिए। सीता देवी कभी विदेशी वस्त्रका इस्तेमाल नहीं करती थीं, वह नित्य नियमसे सूत कातती थीं और आपको भी उनकी तरह सूत कातना चाहिए।

अस्पृश्यताके बारेमें बोलते हुए उन्होंने कहा कि सनातन धर्ममें अस्पृश्यता-जैसी कोई चीज नहीं है। युगोंसे सम्मान पा रहे इस उदार सनातन धर्मकी तहोंमें अवमानना और विद्वेषको भावनाका लेश भी नहीं है। यदि आप इस धर्मको नष्ट होनसे बवाना चाहते हैं तो आपको धर्मके मूल तत्त्वोंमें पैठे हुए इस अस्पृश्यताके दोषको अलग करना होगा। गोखलेने कहा है कि सारा संसार भारतको 'परिया' की तरह मानेगा, क्योंकि आप लोग अपने भाइयों और बहनोंको उसी निगाहसे देखते हैं। मैं देखता हूँ कि गोखलेका यह कथन अक्षरशः सत्य है।

अपना भाषण समाप्त करते हुए महात्माजीने कहा कि यहाँपर जो कुछेक गज सूत मैंने काता है, उससे हम स्वराज्यके पथपर कितने ही गज आगे बढ़ गये हैं और मेरी तो एकमात्र प्रार्थना यही है कि आप हिन्दुस्तानके स्वराज्यके लिए, देशबन्धुके लिए, अछूतोंके लिए, मुसलमानोंके लिए और हिन्दुस्तानकी अन्य सभी जातियोंके लिए सूत कातें।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २९-५-१९२५

९४. पत्र : पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको

शान्तिनिकेतन
ज्यष्ठ सुदी ७ [२९ मई, १९२५][१]

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र मिल गया। मुझे खेद है कि आप गोरक्षा-मण्डलके कोषाध्यक्षका कार्य नहीं सम्भाल सकेंगे। आप अपनी कृपादृष्टि तो रखेंगे न?

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६१९६) से।

सौजन्य : पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास

  1. शान्तिनिकेतन डाकखानेकी मुहर ३० मई, १९२५ की है। जेष्ठ सुदी सप्तमी २९ मईको पड़ी थी।