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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण यही है कि मैं बहुत जागरूक रहता हूँ। मैं पाठकोंको यह भी बता देना चाहता हूँ कि मेरी स्वराज्य सम्बन्धी हलचलका भी सम्बन्ध उसी अन्तर्द्वन्द्वसे है। मैं इस स्वराज्य कार्यमें इसलिए लगा हुआ हूँ कि मेरी आत्माको इससे अत्यन्त सन्तोष मिलता है। इसपर एक मित्रने मुझसे कहा कि यह तो आपकी एक अत्यन्त ही परोक्ष किस्मकी, स्वार्थसिद्धिकी दोहरी चेष्टा है। मैंने इसे तुरन्त स्वीकार किया।

मैं हरिलालके मामलोंसे अवगत नहीं हूँ। वह कभी-कभी मुझसे मिल जाता है, पर मैं उसके कारोबारकी भीतरी बातें जाननेकी कभी कोशिश नहीं करता। मुझे यह भी मालूम नहीं कि वह अपनी कम्पनीमें एक डायरेक्टरकी हैसियतसे काम कर रहा है। मुझे यह भी पता नहीं कि इस समय उसके कारोबारका क्या हाल है——हाँ, इतना मालूम है कि हालत अच्छी नहीं है। यदि वह नेकनीयत है तो तमाम लेनदारोंका रुपया पूरा चुकता किये बिना दम न लेगा——फिर उसका स्टोर चाहे लिमिटेड हो या न हो। प्रामाणिक व्यवसायके बारेमें मेरी यही मान्यता है। पर हो सकता है कि उसके विचार जुदे हों और वह दिवाला निकालनेसे सम्बन्धित कानूनका सहारा ले। मेरी तरफसे सर्वसाधारणको इतना ही यकीन दिला देना काफी है कि किसी भी छल-छद्मकी बातका समर्थन मेरी ओरसे कभी नहीं होगा। मेरे नजदीक सत्याग्रह-धर्म, प्रेमधर्म एक शाश्वत सिद्धान्त है। मैं तमाम अच्छी बातोंके साथ सहयोग करता हूँ। मैं तमाम बुरी बातोंके साथ असहयोग करनेका इच्छुक रहता हूँ, फिर उनका सम्बन्ध मेरी पत्नीके साथ हो, लड़केके साथ हो, या खुद मेरे ही साथ। मैं दोनोंमें से किसीकी भी ढाल बनना नहीं चाहता। मैं चाहता हूँ कि दुनिया हमारे तमाम दोषों और बुराइयोंको जान ले। जहाँतक हो सकता है शिष्टताके साथ मैं दुनियाको कोटुम्बिक रहस्य मानी जानेवाली अपनी तमाम बातें बता देता हूँ। मैं उन्हें छिपानेकी जरा भी कोशिश नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि उनको छिपानेसे हमारी हानि ही होगी।

हरिलालके जीवनमें बहुतेरी ऐसी बातें हैं, जिन्हें मैं नापसन्द करता हूँ। वह यह बात जानता भी है। पर उसके इन दोषोंके रहते हुए भी मैं उसे प्यार करता हूँ। आखिर पिताका हृदय ही ठहरा। ज्यों ही वह उसमें प्रवेश पाना चाहेगा, उसे स्थान मिल जायेगा। फिलहाल तो उसने अपने लिए उसका द्वार बन्द कर रखा है। अभी उसे और दर-दरकी खाक छाननी है। मानवी पिताके संरक्षणकी तो निश्चित सीमाएँ होती हैं, पर देवी पिताका द्वार उसके लिए सदा खुला हुआ है। वह उसे खोजेगा तो वहाँ जरूर स्थान पायेगा।

ये वकील साहब तथा उनके मुवक्किल इस बातको जान लें कि यदि एक वयस्क पुत्रकी गलतियोंसे, जिनके लिए मैंने कभी उसको उत्साहित नहीं किया, मेरी कीर्तिमें कलंक लग सकती हो तो फिर वह कीर्ति किस कामकी? यदि कांग्रेसके सभापति और उसकी भिन्न-भिन्न कमेटियोंके सदस्य अपने न्यास अथवा उत्तरदायित्वके प्रति सच्चे बने रहें और एक पैसेका भी दुरुपयोग न करें तो इस दरिद्र देशका आर्थिक कल्याण ऐसी निजी कम्पनियोंके डूब जानेपर भी भलीभाँति सुरक्षित रहेगा। मुझे उन