पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३१

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१. सन्देश : जनताके लिए

मुझे आसमानपर चढ़ाने से कोई लाभ नहीं। यदि आप सचमुच मुझे खुश करना चाहते हैं तो मेरी सलाहपर चलिए।

महिलाओं और पुरुषों, सभीसे मेरी यही प्रार्थना है कि आप अपनी जेबके मुताबिक ज्यादासे-ज्यादा जितना भी बन पड़े उतना खद्दर खरीदें। चन्द पैसे शायद आपके लिए बड़ी चीज नहीं है। किन्तु उन गरीब ग्रामीणोंके लिए तो वे बड़ी नियामत हैं।

मो० क० गांधी
 

[अंग्रेजीसे]

अमृतबाजार पत्रिका, १-५-१९२५
 

२. भेंट : 'स्टेट्समैन' के प्रतिनिधिसे

कलकत्ता
 
१ मई, १९२५
 

श्री गांधीसे सबसे पहले वर्तमान राजनीतिक परिस्थितिमें यूरोपीयों द्वारा अपनाये गये रुखके बारेमें उनके विचार और समय-समयपर राजनीतिक समस्याओंके हलके लिए जो तरह-तरहके रामबाण बतलाये जाते हैं, उनकी भूल-भुलैयाके बीच एक कोई स्पष्ट नीति निरूपित करने में अनेक लोगोंको जो कठिनाई महसूस होती है, उसके बारेमें उनकी राय पूछने पर उन्होंने उत्तर दिया :

राजनीतिक चिन्तनमें लोगोंके पथ-प्रदर्शनके लिए कोई संगठन होना चाहिए ओर राष्ट्रीय कांग्रेसको राष्ट्रीय भावनाका प्रतिनिधित्व करना चाहिए। वर्तमान कार्य- क्रमके दो पक्ष हैं — आन्तरिक और बाह्य। आन्तरिक पक्षका उद्देश्य भी जातियोंकी एकता सम्पादित करना, ('हिन्दू-मुस्लिम एकता'का अभिप्राय भी यही है), हिन्दुओं द्वारा अस्पृश्यता-निवारण, चरखा और खद्दर है।

बाह्य पक्षमें स्वराज्यवादी दल द्वारा कौंसिलोंमें किया जानेवाला काम आता है। यह दल राष्ट्रीय कांग्रेसका एक अविभाज्य अंग है। सारा राष्ट्रीय कार्यक्रम इतना ही है।

भारतको आम राजनीतिक परिस्थितिके सम्बन्धमें विचार व्यक्त करनेके लिए कहने पर, महात्मा गांधीने कहा :

निश्चय ही, मैं निराशावादी नहीं हूँ, किन्तु मुझे आशाके ज्यादा आसार नजर नहीं आते। जब कभी हमें अपने आन्तरिक कार्यक्रममें अर्थात् भारतकी सभी

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