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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जातियोंकी एकता, अस्पृश्यता निवारण और चरखेके विकास तथा खद्दरके उपयोगके कार्यक्रममें कोई स्पष्ट सफलता दिखने लगेगी, तभी मुझको भी आशा दिखाई देने लगेगी।

"ब्रिटेनके घोषित मित्र" को हैसियतसे मुझे खेदके साथ कहना पड़ता है कि मुझे उनके हृदय-परिवर्तनके कोई चिह्न नहीं दिखाई पड़ते।

यूरोपीय लोग कार्यक्रमके आन्तरिक तथा बाह्य दोनों ही पक्षोंको अपना सहयोग दे सकते हैं और मैं जो बार-बार कहता रहा हूँ, फिर उनसे वही कहता हूँ कि वे कार्यक्रमके दोनों पक्षोंपर इस दृष्टिसे विचार करके देखें। जहाँतक बाह्य पक्षका ताल्लुक है अगर उनको इस बातका भरोसा हो जाये कि हम जो कहते हैं वही करना भी चाहते हैं और सम्भव होनेपर भी हम अंग्रेजोंको देशसे बाहर निकाल देने या अंग्रेजोंसे नाता तोड़ देनेके लिए कतई उत्सुक नहीं हैं तो उनको हमारे साथ सहयोग करना चाहिए।

असहयोगके प्रश्नके बारेमें श्री गांधीने कहा :

जहाँतक राष्ट्रका सम्बन्ध है, असहयोगका कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है, किन्तु जहाँतक मेरा अपना सम्बन्ध है, यह स्थगित नहीं किया गया है। यद्यपि इसे वैयक्तिक रूपसे स्थगित करना आज कोई अधिक अर्थ नहीं रखता। मैं कभी कौन्सिलमें नहीं गया; किन्तु मेरे खयालसे कमसे-कम वर्तमान परिस्थितिमें इसे उचित मानना मेरी एक मजबूरी ही है। हालमें ही मुझे जेलकी जो सजा काटनी पड़ी थी, उसके कारण मैं चाहनेपर भी परिषद्में प्रवेश नहीं कर सकता। और वकालत मैंने बहुत दिन हुए छोड़ दी थी, किन्तु अब 'सोसाइटी ऑफ इनर टेम्पल' ने मेरी सनद छीनकर मेरे प्रलोभनका अन्तिम सहारा भी मुझसे छीन लिया है।

इस तरह मेरा असह्योगका जो रूप अब रह गया है, वह श्री दासके शब्दोंमें एक "मनः स्थिति"-भर है। परन्तु यह एक ऐसी मनः स्थिति है जिसे मैं व्यक्तिगत तौरपर बड़ा महत्त्व देता हूँ, क्योंकि अब सक्रिय असह्योगी न रहनपर मैं कहीं अधिक प्रभावशाली ढंगसे अंग्रेजोंसे बात कर सकता हूँ। मैं उनसे कह सकता हूँ कि मैं सचमुच उनका मित्र हूँ और मित्रके नाते बतलाना चाहता हूँ कि मुझे उनके हृदय-परिवर्तनके अभी कोई आसार दिखाई नहीं पड़ते।

मैं जन्मजात सहयोगी हूँ, किन्तु मेरे लिए असहयोग आवश्यक हो गया था। अब मैं उस अवसरको प्रतीक्षामें हूँ जब मैं फिरसे हार्दिक सहयोगी बनने की घोषणा कर सकू।

श्री गांधीने हिन्दू-मुस्लिम एकताका उल्लेख करते हुए कहा :

मैंने अपने दौरेमें देखा है कि दोनों सम्प्रदायोंमें परस्पर अविश्वास और भय है, किन्तु मुझे इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि निकट भविष्यमें दोनों सम्प्रदायोंमें एकता स्थापित हो जायेगी। दोनों ही पक्ष इसे एक राष्ट्रीय आवश्यकता मानते हैं।

१. लन्दनकी उन चार संस्थाओंमें से एक, जिन्हें लोगोंको वैरिस्टरी करनेकी सनद देनेका एका-धिकार प्राप्त है।