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भेंट : 'स्टेट्समैन' के प्रतिनिधिसे

इसका इन्तजार नहीं करेगा कि उससे कहा जाये; बल्कि वह स्वयं ही अपने मित्रोंसे चन्दा माँगना शुरू कर देगा।

लोग जिस उत्साहसे १८ तारीखकी सभामें शामिल हुए थे, चन्दा देनेके मामलेमें भी उन्हें स्वेच्छापूर्वक उसी उत्साहसे आगे आना चाहिए। मुझे आज रात म्युनिसिपल मार्केटकी सभामें शरीक होनेके लिए बुलाया गया था। काफी बड़ी सभा थी। मैं तो स्मारकके लिए चन्दा इकट्ठा करनेके ही उद्देश्यसे वहाँ गया था। लेकिन वह सभा इतनी विशाल थी और उसे नियन्त्रित रखना इतना कठिन था कि वहाँ चन्दा इकट्ठा करना मुश्किल था। यदि कोष एकत्रित करनेकी अवधिमें सभाओंका आयोजन करनेवाले लोग मुझे ऐसी एक भी सभामें न बुलायें जहाँ चन्दा इकट्ठा न किया जा सकता हो तो वह मेरे ऊपर अनुग्रह ही होगा।

कलकत्ताके आसपासके गाँवोंसे हम काफी उम्मीद रख सकते हैं। विभिन्न जिलोंके प्रमुख व्यक्तियोंके पास तार भेजे जा चुके हैं। मुझे भरोसा है कि वे सब पहली जुलाईसे पहले ही चन्दा इकट्ठा करके कोषाध्यक्षके पास भेज देंगे।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २४-६-१९२५

१७४. भेंट : 'स्टेट्समैन' के प्रतिनिधिसे

[२४ जून, १९२५ से पूर्व]

कलकत्तेमें गांधीजीने 'स्टेट्समैन' के एक प्रतिनिधिसे की गई भेंटके दौरान कहा:

मैं यहाँ तबतक ही रहूँगा जबतक मुझे ऐसा लगेगा कि यहाँ मेरी उपस्थिति अपेक्षित है या फिर जबतक श्री दासके विश्वस्त साथी-सहयोगी मुझे यहाँ रखना चाहेंगे। मैंने बिना किसी शर्तके अपनी सेवाएँ उनको अर्पित कर दी हैं।

मैं पहले ही इस आशयका सुझाव दे चुका हूँ कि पहली जुलाईको सारे भारतमें श्रद्धांजलि-सभाएँ की जानी चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि भारतके प्रत्येक बड़े केन्द्रमें सभी मतोंका प्रतिनिधित्व करनेवाले लोग इनमें शामिल होंगे। मैं कमसे-कम उक्त तारीखतक तो शायद यहीं रहूँगा।

भविष्यके सम्बन्धमें राय पूछी जानेपर श्री गांधीने कहा:

एक सांसारिक व्यक्तिकी हैसियतसे मेरे लिए यह कह सकना बहुत कठिन है कि भविष्य क्या होगा, लेकिन एक आस्थावान व्यक्तिके नाते मैं कह सकता हूँ कि श्री दासमें जिन सद्गुणोंको देखनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है, वे लाभप्रद सिद्ध होंगे और उनका परिणाम अच्छा ही निकलेगा। यह लाभ किस रूपमें प्रतिफलित होगा सो मैं नहीं जानता।

उन्होंने पहले जो यह सुझाव दिया था कि श्री दासको अर्पित की जानेवाली श्रद्धांजलियोंका परिणाम सभी दलोंकी एकता-स्थापनाके रूपमें प्रतिफलित होना चाहिए; उसका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने कहा :