पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

 

बंगालके दौरेकी अवधि बढ़ा देने के उद्देश्य के बारेमें पूछनेपर, श्री गांधीने कहा कि मैं बंगालमें खादीके प्रचारकी सम्भावनाओंका पता लगाने, अस्पृश्यताको समस्याका अध्ययन करने और हिन्दू मुसलमानोंके पारस्परिक सम्बन्धोंको समझनके लिए आया हूँ। मैंने बहुत दिनोंसे बंगालके कुछ स्थानोंका दौरा करनेका वचन दे रखा था। दक्षिण भारतका दौरा समाप्त करने के बाद जैसे ही मुझे अवसर मिला मैंने उसका उपयोग बंगाल आनेके लिए किया है। मैं अपने को स्वस्थ अनुभव कर रहा हूँ और मुझे विश्वास है कि मैं बंगालका कार्यक्रम पूरा कर लूंगा।

प्रतिनिधिने पूछा कि यदि हस्तांतरित विभागोंको और अधिक शक्ति दे दी जाये और औपनिवेशिक स्वराज्यके लिए एक सम्भावित तिथिकी घोषणा कर दी जाये तो आपका क्या रुख होगा? श्री गांधीने मुस्कराते हुए उत्तर दिया :

जब मैं जानता हूँ कि कल ही में श्री दाससे मिल सकता हूँ और उनसे बातचीत कर सकता हूँ, मुझे ठीक-ठीक स्थितिका पता चल सकता है, तब मैं मात्र अनुमानका सहारा क्यों लूं?

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २-५-१९२५

४. भाषण : कलकत्ताकी सार्वजनिक सभामें[१]

१ मई, १९२५


मित्रो,

मैं हिन्दुस्तानीमें काफी बोल चुका हूँ और मुझे आशा है कि काफी श्रोताओंने मेरी टूटी-फूटी हिन्दुस्तानी समझ भी ली है। मुझे इस बातसे हार्दिक वेदना होती है कि जब कभी मैं दक्षिणमें या बंगालमें आता हूँ तो मुझे शिक्षित भाइयोंको अपनी बात समझानेके लिए अंग्रेजीमें बोलनेपर मजबूर होना पड़ता है। मैं चाहता हूँ कि दक्षिण और बंगालके लोग आलस्य छोड़ दें और अपनी मातृभाषाके ज्ञानके साथ-साथ हिन्दी या हिन्दुस्तानीका भी अच्छा ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प कर डालें। हिन्दी, केवल हिन्दी ही भारतमें अन्तन्तिीय विनिमयको भाषा बन सकती है। अंग्रेजीको, जैसा कि उसे होना चाहिए, अन्तर्राष्ट्रीय राजनयिक भाषा, और संसारके विभिन्न राष्ट्रोंकी पारस्परिक विचार-विनिमयकी भाषा रहने दिया जाये। किन्तु जो विशेष काम हिन्दी या हिन्दुस्तानीसे सघ सकता है, वह अंग्रेजीसे कभी सम्भव नहीं है। आपको यह जानना चाहिए कि भारतके करीब २० करोड़ लोग मेरी टूटी-फूटी हिन्दुस्तानी समझ लेते हैं। लोगोंको ऐसा कहनेका अवसर मत दीजिए कि भारतके १०

 
  1. मिर्जापुर पार्क में हुई इस सभामें करीब १० हजार लोग उपस्थित थे। सभाकी अध्यक्षता श्री प्रफुल्लचन्द्र रायने की थी।