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भेंट : एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिसे

श्री गांधीने आगे कहा कि इस एकताको स्थापनासे पहले, हो सकता है कि दोनोंमें टकराव भी हो; उनके टकरावके रूपमें आनेवालो विपत्ति टले चाहे न टले, इतना तो सर्वथा निश्चित है कि आखिरकार दोनोंमें एकता होकर रहेगी।

श्री दासके घोषणा-पत्र तथा समझौतेकी उनकी शर्तोंके बारेमें पूछे जानेपर, श्री गांधीने कहा:

मैं जबतक श्री दाससे परामर्श नहीं कर लेता तबतक मैं चाहूँगा कि मैं उसपर कुछ न कहूँ, मौटे तौरपर मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि समझौतेके अन्तर्गत और समझौता न होता तो भी मेरा कर्त्तव्य है कि मैं स्वराज्यवादी दलकी या व्यक्ति- गत रूपसे श्री दासकी राजनीतिक गतिविधियोंमें कोई अड़चन पैदा न करूँ।

परमश्रेष्ठ वाइसरायके इंग्लैंड जानेके सम्बन्धमें अपने विचार प्रकट करनेके लिए कहनेपर, श्री गांधीने कहा:

मैं नहीं जानता कि जो बातचीत चल रही है वह किस प्रकारकी है और मैं अखबारोंके विवरणोंके आधारपर कोई राय नहीं बनाना चाहता, विशेषकर ऐसे समय जब कि मुझे अखबारोंका एक उदासीन पाठक बननेपर विवश होना पड़ा है। बाजारोंमें चलनेवाली बहसोंमें मेरी कभी भी दिलचस्पी नहीं रही। मैं नहीं जानता कि लॉर्ड रोडिंगका उद्देश्य क्या है, मैं लॉर्ड बर्कनहेडके भाषणका फलितार्थ भी नहीं समझा हूँ और परदेके पीछे क्या हो रहा है इसके बारेमें तो और भी कम जानता हूँ।

[अंग्रेजीसे]

स्टेट्समैन, २-५-१९२५


३. भेंट : एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिसे

कलकत्ता
 
१ मई, १९२५
 

एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिने आज दोपहर बाद महात्मा गांधीसे भेंट की। उस समय वे कताई कर रहे थे। दास-बर्कनहेडकी बातचीत का उल्लेख करते हुए, महात्माजीने कहा कि मैं तबतक कोई वक्तव्य नहीं दूंगा जबतक कि मैं खुद श्री दाससे मिल नहीं लेता। इस समय कोई वक्तव्य देकर मैं उनके मार्गमें कोई अड़चन पैदा नहीं करना चाहता।

मैं बंगालमें श्री दासके कार्यमें बाधा डालने नहीं बल्कि उन्हें यथाशक्ति सहायता पहुँचाने आया हूँ।

१. लॉर्ड रीडिंग (१८६०–१९३५); इंग्लैंडके मुख्य न्यायाधीश, १९१३–२१; भारतके वाइसराय और गवर्नर-जनरल, १९२१-६, विदेश मन्त्री, १९३१ ।

२. भारत-मन्त्री १९२४-२८ ।