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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

को साक्षी मानकर संकल्प किया है कि मैं अपनी शक्ति-भर इस दलकी सहायता करूंगा। मैंने संकल्प किया है कि मैं इस दलके कार्यक्रममें हस्तक्षेप करनेकी बात मनमें भी नहीं आने दूंगा। मैंने अपना तन-मन इसके कार्यक्रममें नहीं लगा दिया है, इसका मात्र कारण यही है कि मेरी अपनी कुछ सीमाएँ हैं, और मैं इस दलकी नीतिसे पूर्णतया सहमत नहीं हूँ। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मुझे उनकी सहायता नहीं करनी चाहिए। इसका यह भी अर्थ नहीं कि उनकी नीति देशके लिए हानिकारक है। इसका इतना ही अर्थ है कि हममें, राजनीतिक कार्यक्रम और रचनात्मक कार्यक्रम इन दोनों में से किसे कितना महत्त्व दिया जाये और किसपर अपेक्षाकृत अधिक जोर दिया जाये — इस बातको लेकर मतभेद है। मेरी श्रद्धा तो रचनात्मक कार्यक्रमपर ही है। मैं जितना ही अधिक आत्म-विवेचन करता हूँ उतना ही अधिक यह महसूस करता हूँ कि इंग्लैंडके बेजोड़ राजनयिकोंके साथ कूटनीतिक दाँव-पेच करनेकी अपेक्षा देशकी आत्म-शक्तिके विकासके लिए रचनात्मक कार्यक्रमको क्रियान्वित करनेके लिए ही मैं अधिक उपयुक्त हूँ। मैं आपके सामने स्वीकार करता हूँ कि जबतक मुझे यह नहीं लगेगा कि हमारे अन्दर आत्मिक शक्ति मौजूद है, तबतक मुझे उनमें से किसी भी अधिकारीके साथ वार्ता चलाने में बड़ा अटपटापन महसूस होगा। और मैं आपको यही बतलाने यहाँ आया हूँ कि आज हमारे अन्दर वह शक्ति नहीं रह गई है जो १९२१ में हम समझते थे कि हमारे अन्दर पर्याप्त मात्रामें मौजूद है। इसीलिए मैं अपनी समूची शक्ति और योग्यता इसी एक काममें, इसी रचनात्मक कार्यक्रममें लगा देना चाहता हूँ। यही देश और स्वराज्यवादीदल — दोनोंकी मेरी सर्वोत्तम सेवा होगी, यही मेरा सर्वोत्तम योगदान होगा। यदि आप, बंगालके नवयुवक और नवयुवतियाँ, चाहे आप किसी भी राजनीतिक दलसे सम्बद्ध क्यों न हों, मेरी सहायता करें, यदि आप कृपापूर्वक इस रचनात्मक कार्यक्रमको एक फलता-फूलता रूप प्रदान करनेमें मेरी सहायता करें तो हमारी बेड़ियाँ स्वयमेव टूटकर गिर जायेंगी। यदि आप रचनात्मक कार्यक्रमको सफल बना सकें तो जिन लोगोंको हमारे विचारसे अन्यायपूर्वक जेलकी सजाएँ दी गई हैं और जिनको नजरबन्द रखा जा रहा है, जो आज मांडलेकी जेलोंमें यन्त्रणा पा रहे हैं, आप देखेंगे कि वे आपके कहे बिना ही मुक्त कर दिये जायेंगे। पर यह रचनात्मक कार्यक्रम जो मेरी टेक है, असल में है क्या? मैं उन तीनों बातोंके बारेमें संक्षिप्तसे-संक्षिप्त रूपमें आपसे कुछ कहूँगा। हिन्दू-मुस्लिम एकताका अर्थ उन सभी जातियोंमें एकता स्थापित करना है जो हमारे इस सुन्दर देशमें बसती हैं। क्या हम इस कार्यक्रमको पूरा नहीं कर सकते? क्या यह कार्यक्रम अवांछनीय है ? किन्तु मैंने इस सिलसिले में अपनी अक्षमता स्वीकार कर ली है। मैं स्वीकार कर चुका हूँ कि मैं इस रोगके चिकित्सकके रूपमें पूरा नहीं उतरा हूँ। मुझे ऐसा नहीं लगा कि हिन्दू या मुसलमान कोई भी मेरे बतलाये इलाजको स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं। इसीलिए मैं आजकल सिर्फ सरसरी तौरपर ही इस समस्याका जिक्र करता हूँ। और इससे अधिक कुछ भी नहीं कहता कि यदि हम देशकी मुक्ति चाहते हैं तो हम हिन्दुओं और मुसलमानोंको किसी-न-किसी दिन एक