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भाषण : कलकत्ताकी सार्वजनिक सभामें

होना ही पड़ेगा। यदि एक होने से पहले हमारे भाग्यमें एक-दूसरेका खून बहाना ही बदा है तो मेरा कहना है कि हम जितनी जल्दी ऐसा कर डालें उतना ही अच्छा रहेगा। यदि हम एक-दूसरेके सिर फोड़ना चाहते हैं तो ऐसा पुरुषोचित ढंगसे खुल्लम- खुल्ला करना चाहिए; हमें परस्पर हमदर्दीका केवल ढोंग नहीं करना चाहिए। आप यदि किसीके प्रति हमदर्दी नहीं दिखाना चाहते तो किसीसे अपने प्रति हमदर्दी जाहिर करने के लिए भी न कहें। हिन्दू-मुस्लिम एकताके बारेमें मैं इतना ही कहना चाहता हूँ।

क्या हम हिन्दुओंके लिए अपने आपको अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्त कर लेना बड़ा ही समय-साध्य या असम्भव कार्यक्रम है ? जबतक अस्पृश्यता हिन्दू धर्मको विकृत बनाये हुए है, तबतक मेरे विचारमें स्वराज्य प्राप्त करना सर्वथा असम्भव है। मान लें कि ब्रिटिश सरकार भारतको उपहारके रूपमें स्वराज्य दे देगी, लेकिन अगर हम अपने-आपको इस अभिशापसे मुक्त नहीं कर पाये तो वह उपहार हमारे पवित्र देशके लिए एक अभिशाप ही सिद्ध होगा। अस्पृश्योंकी स्वतन्त्रताके बिना स्वराज्य एक बड़ा अभिशाप सिद्ध होगा। परन्तु अस्पृश्यता निवारणका वास्तविक आशय क्या है, सो मैं सनातनी हिन्दुओंको भली-भाँति समझा देना चाहता हूँ; और यह इसलिए कि मैं सनातनी हिन्दू होनेका दावा करता हूँ। मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप किसीके साथ खान-पानका व्यवहार करें। मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप अस्पृश्योंके या किसी भी अन्य जातिके लोगोंके साथ बेटी-व्यवहार रखें, लेकिन मैं आपसे यह जरूर कहता हूँ कि आप अस्पृश्यताके अभिशापको दूर करें, ताकि ऐसा न हो कि आप उनकी सेवा करनेसे वंचित रह जायें। मेरे लिए अस्पृश्यता निवारण उन लोगोंकी सेवा करने के अपने अधिकारका दावा करना है, जिनको हमने धर्मके पवित्र नामपर गुलाम बना रखा है। कलकत्ताके सनातनी हिन्दू मेरी बातपर कान दें; यह हिन्दू-धर्मकी परीक्षाकी घड़ी है; उसके गुण-दोषोंको काँटेपर रखकर देखा जा रहा है। यदि आप अस्पृश्यताको दूर नहीं करेंगे तो इस धर्मके दोषोंका पलड़ा इतना भारी हो जायेगा कि यह रसातलको चला जायेगा। मैं अस्पृश्यताके बारेमें इतना ही कहूँगा।

इसके बाद आप अपने कार्यक्रमकी तीसरी मद — चरखे और खद्दर — को लें। मैं आपसे क्या चाहता हूँ? कलकत्ताके करोड़पतियो, बैरिस्टरो, और कलकत्तेके विधान- सभासदो तथा पार्षदो, मैं आपसे क्या चाहता हूँ ? कलकत्ताकी महिलाओ, मैं आपसे क्या चाहता हूँ? मैं भारतकी विनष्ट होती और भूखों मरती हुई मानवताके लिए ईश्वरके नामपर नित्य आपका आधा घंटा चाहता हूँ। इस कामको करने अर्थात् गरीबोंके लिए आधा घंटा कातनको देना क्या आपके लिए बहुत अधिक है ? ऐसा करनेसे खद्दर सस्ता हो जायेगा और मैं बंगालके ग्रामीणोंसे कह सकूँगा कि करोड़- पतियोंकी कन्याएँ और उनके पुत्र आपके लिए कताई कर रहे हैं। क्यों ? क्यों आप नहीं कातेंगे? क्या आप जानते हैं कि ग्रामीणोंका हमपर से, स्वयं अपनेपर से और ईश्वरपर से विश्वास उठ गया है? क्योंकि वे देखते हैं, हम उनके पास अकसर जाया करते हैं, कभी एक कार्यक्रम और कभी दूसरे कार्यक्रमके लिए पैसा इकट्ठा करने । वे नहीं जानते कि हम उन्हें कहाँ ले जाना चाहते हैं, इसलिए वे हमपर विश्वास