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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

महात्माजीने आगे बोलते हुए कहा कि देशबन्धुको किसी व्यक्तिसे घृणा नहीं थी तथा उन्होंने अपने जीवनसे यह प्रदर्शित कर दिया था कि अस्पृश्यताका धर्ममें कोई स्थान नहीं है। यदि वास्तवमें आपके मनमें देशबन्धुके प्रति प्रेम और अनुभूति है तो मैं आपसे उनकी इच्छाओंके अनुसार कार्य करके स्त्रराज्य प्राप्त करनेका अनु- रोध करता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १७-७-१९२५
 

२३३. प्रश्नोंके उत्तर[१]

जैसोर जाते हुए गाड़ीमें
[१४ जुलाई, १९२५ या उससे पूर्व][२]

प्रश्न ( १ ) क्या आप यह सोचते हैं कि आप कांग्रेसके सदस्य बने रहें, इसीलिए उसके सिद्धान्तोंको बदल दिया जाना चाहिए। आपके विचारसे क्या यह रद्दोबदल आवश्यक है? आपको जो सिद्धान्त मान्य है, क्या आप उसकी व्याख्या करेंगे।

उत्तर : यदि मताधिकारके नियममें रद्दोबदल किया ही जाना हो तो खरीदकर सूत देना बन्द कर दिया जाना चाहिए।

(२) यदि मतदानकी पात्रताके लिए वार्षिक चन्देके साथ-साथ विकल्पके रूपमें सूतकी एक निश्चित मात्रा देनी भी हो तो क्या यह आपको मान्य होगा?

ऐसी हर बात जो स्वराज्य दलको मान्य है मुझे भी मान्य है।

(३) यदि कांग्रेस सूत सम्बन्धी सदस्यताकी शर्तको समाप्त कर देती है और स्वराज्यवादियोंको विधानसभाओंमें राजनीतिक कार्यको निश्चित करनेका अधिकार देनेके बजाय कौंसिलोंके कार्यके साथ-साथ अपना स्वयंका राजनीतिक कार्यक्रम बनाती है तो क्या आप उसे कार्यान्वित करनेमें मदद देंगे?

इस समय तकके अपने विचारोंको देखते हुए मैं समझता हूँ कि मैं ऐसी संस्थाका नेतृत्व नहीं कर सकूँगा।

(४) आपकी रायमें कौंसिलोंके अन्दर और बाहर कांग्रेसका कार्यक्रम क्या होना चाहिए?

वर्तमान कार्यक्रम ही।

(५) क्या आप यह समझते हैं कि केवल संवैधानिक आन्दोलनके बलपर ही अंग्रेजोंको स्वराज्य देनेपर बाध्य किया जा सकता है?

  1. बॉम्बे क्रॉनिकलने विभिन्न राजनीतिक दलोंके नेताओंके पास राजनीतिक एकतासे सम्बन्धित कुछ प्रश्न उनके विचार जाननेके लिए भेजे थे।
  2. गांधीजी १३ जुलाईको कलकत्ता और १४ जुलाईको जैसोरमें थे। यह निश्चित नहीं है कि गांधीजी कलकत्तासे जैसोरके लिए १६ जुलाईको रवाना हुए थे या १४ को।