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२३१. सम्मति : दर्शक-पुस्तिकामें[१]

१२ जुलाई, १९२५

अच्छी पुस्तकें पढ़ना अच्छा है; पर हम उत्कृष्ट साहित्यमें जो-कुछ पढ़ें उसे अपने जीवनमें उतारना कहीं अधिक अच्छा है।

मो॰ क॰ गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी॰ डब्ल्यू॰ ६०५१) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : सार्वजनिक पुस्तकालय, इलाहाबाद

 

२३२. भाषण : राजशाहीकी सार्वजनिक सभामें[२]

१२ जुलाई, १९२५

मानपत्र तथा भेंट[३] देनेवालोंको धन्यवाद देनेके बाद गांधीजीने बताया कि मेरे इस दौरेके दो उद्देश्य हैं। उनमें पहला देशबन्धु स्मारकके लिए १० लाख रुपया इकट्ठा करना है। मुझे पूरी आशा है कि राजशाहीके बड़े-बड़े जमींदार, वकील और व्यवसायी स्मारक कोषमें समुचित दान देंगे। मैं प्रत्येकसे यथाशक्ति योग देनेका अनुरोध करता हूँ। लाखों लोग देशबन्धु दासके निधनपर दुःखित हैं। देशबन्धुके प्रति इस अगाध प्रेमका उपयोग मैं हिन्दुस्तानकी शक्ति और सामर्थ्यको बढ़ानेकी दिशामें करना चाहता हूँ। हमारा पहला कर्त्तव्य देशबन्धुके स्मारकमें यथाशक्ति दान देकर उनकी इच्छाओंको पूरा करना है।

देशबन्धुके साथ दार्जिलिंगमें हुई अपनी बातचीतका हवाला देते हुए महात्माजीने बताया कि देशबन्धुने जोर देकर यह बात कही थी कि गाँवोंके पुनर्गठनके बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता तथा इस पुनर्गठनके लिए सबसे आवश्यक चीज है चरखा। मैं आपसे दिवंगत देशबन्धुकी इच्छाके अनुसार काम करनेका अनुरोध करता हूँ अर्थात् (१) आप नियमसे प्रतिदिन आधा घंटा कातें, (२) खद्दर पहनें और (३) हिन्दू और मुसलमान आपसमें मेलसे रहें। दार्जिलिंगमें मेरे और देशबन्धुके बीच हुई बात-चीतका यही एक मुख्य विषय था।

२७–२५
  1. गांधीजीने यह टिप्पणी राजशाही सार्वजनिक पुस्तकालयकी दर्शक-पुस्तिकामें लिखी थी।
  2. सभामें गांधीजीको स्वागत समिति, नगरपालिका, जिला व स्थानीय बोर्डों तथा अन्य सार्वजनिक संस्थाओंकी ओरसे मानपत्र भेंट किये गये थे। उत्तरमें दिये गये गांधीजीके हिन्दी भाषणका बंगलामें अनुवाद सतीशचन्द्र दासगुप्त ने किया था। मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।
  3. कलम नामक जगहमें बने पीतलके बर्तन और एक पेटी चरखा भेंटमें दिये गये थे।