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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि प्रत्येक नगरमें उस महान् देशभक्तके अनुरूप स्मारक बनाया जायेगा; लेकिन उसके लिए अभी उपयुक्त समय नहीं आया है। मेरी विनम्र सम्मतिमें हर बंगालीकी, जिसे देशबन्धुकी स्मृति प्रिय है, प्रतिष्ठा इसीमें है कि वह स्थानीय स्मारकके लिए एक भी पैसा देनेसे पहले अखिल बंगाल स्मारकके लिए १० लाख रुपये इकट्ठा करनेका काम पूरा करे। बंगालके बाहर रहनेवाले बंगाली सचेत हो जायें। उन सबने अभी अपना रुपया नहीं भेजा है। वे सब बंगाली, जो देशबन्धुसे परिचित थे, पूरा जोर नहीं लगायेंगे तो रुपया इकट्ठा करनेमें अनुचित विलम्बकी सम्भावना है। इसलिए मुझे आशा है कि जो बंगाली इन टिप्पणियोंको पढ़ेंगे वे अपने-अपने क्षेत्रोंमें अधिकसे-अधिक चन्दा लेनेके लिए पूरी शक्तिसे जुट जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-७-१९२५
 

२३८. शंका-निवारण

आजकल मुझे देशबन्धु स्मारकके लिए द्रव्य इकट्ठा करने कई सज्जनोंके यहाँ जाना पड़ता है। ऐसे धनिक महाशयोंमें श्री साबुराम तुलारामजी भी एक हैं। उनके यहाँसे चन्दा तो अच्छा मिला ही; साथमें वहाँ कुछ धर्मकी चर्चा भी हुई। चर्चामें अस्पृश्यताका विषय भी आया। किसी महाशयने मुझसे कहा कि अखबारोंमें ऐसी खबर छपी है कि जिनको हम अस्पृश्य मानते हैं, मैं उनसे रोटी-बेटी व्यवहार करनेको भी कहता हूँ। इस शंकाका मैंने जब निवारण किया तो उन भाइयोंको जिन्होंने प्रश्न किया था, वह आश्चर्यजनक प्रतीत हुआ और उन्होंने मुझसे कहा कि जो बात आपने यहाँ कही है उसका सारांश आप 'हिं॰ न॰ जी॰' में दे दीजिए। मैंने उनकी सलाहको मान लिया। उत्तरका सारांश मैं यहाँ देता हूँ।

प्रथम तो जनताको मालूम होना चाहिए कि मैं अखबार नहीं पढ़ता हूँ; और यदि पढ़ भी लेता हूँ तो जो-जो गलत बयानियाँ मेरे नामपर छपती हैं, उन सबको दुरुस्त करना मेरे लिए असम्भव है। इसलिए जिस किसीके मनमें शंका पैदा हो वह मुझे पूछ लें कि मैंने क्या कहा था। जैसे इसी अस्पृश्यताके विषयमें किसीका यह छाप देना कि मैं अस्पृश्य भाइयोंके साथ रोटी-बेटी व्यवहार चाहता हूँ या मैं उसको उत्तेजना देता हूँ, भूल है। मैंने हजारों बार स्पष्ट रूपमें कह दिया है कि अस्पृश्यतानाशका यह अर्थ कभी नहीं है कि रोटी-बेटी व्यवहारकी मर्यादा तोड़ दी जाये। रोटी-बेटी व्यवहार किसके साथ किया जाये और किसके साथ नहीं, यह एक जुदा ही बात है और फिलहाल उसका निर्णय करनेकी कोई आवश्यकता मुझे प्रतीत नहीं होती। मेरा तो यह भी विश्वास है कि दोनों प्रश्नोंको साथ मिलानेसे जिस सुधारको हम आवश्यक मानते हैं उसमें भी बाधा आ जायेगी। अस्पृश्यताको दूर करना प्रत्येक हिन्दू-धर्मावलम्बीका कर्त्तव्य है। इसके साथ किसी भी दूसरे विषयको मिलानेसे हानि होगी।