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घरका क्या हो?

लोग इस बातमें सन्देह कर रहे हैं कि अस्पताल उसी इमारतमें जो दो पीढ़ियोंसे देशबन्धुके परिवारको सम्पत्ति है, खोला जायेगा या नहीं। मेरा खयाल है कि जिस अपीलपर लॉर्ड सिन्हा और अन्य लोगोंने हस्ताक्षर किये हैं उसमें यह बात साफ-साफ बता दी गई थी। वह इमारत अस्पतालके लिए और ऐसे ही दूसरे कामोंके लिए न्यासियोंके हाथमें आ चुकी है। उसकी कीमत तीन लाखसे ज्यादा है, किन्तु उसपर दो लाख से ज्यादा कर्ज है। यह कर्ज स्वभावतः उस रुपयेमें से चुकाया जायेगा जो इस समय इकट्ठा किया जा रहा है। लेकिन तब स्मारकके न्यासियोंके हाथोंमें दो लाख रुपये देकर तीन लाखकी सम्पत्ति आ जायेगी। दूसरे शब्दोंमें कहूँ तो जब न्यासी १० लाख रुपये इकट्ठे कर चुकेंगे तब उनकी पूँजी ११ लाख हो जायेगी।

शंकालुओं

क्या मैं सचमुच दस लाख रुपया इकट्ठा करना चाहता हूँ? क्या मुझे ऐसा कर पानेकी आशा है? कई व्यक्ति अब भी मुझसे प्रश्न करते हैं। मुझे अभीतक एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला है जिसने स्मारक कोषके लिए कुछ देनेसे इनकार किया हो। मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि अगर बंगाल इसके लिए दस लाख रुपये नहीं देता तो मुझसे उसे ठीकसे पहचाननेमें भूल हुई कहलायेगी। इस रकमको इकट्ठा करनेके लिए सिर्फ समय और संगठनकी आवश्यकता है। मुझे इस विषयमें रत्ती-भर भी सन्देह नहीं है कि हम यह कोष इकट्ठा कर पायेंगे।

उत्साहप्रद नहीं?

स्मारकका उद्देश्य उत्साहप्रद नहीं है, इस आरोपका उत्तर मैं स्थानीय रूपसे दे चुका हूँ। शंका उठानेवाले लोगोंका अभिप्राय यही है कि इस कोषका उपयोग राजनैतिक कार्योंके लिए किया जाता तो अच्छा होता। लेकिन मैं उन्हें याद दिला दूँ कि अपील निकालनेवालोंके सामने कोई विकल्प ही न था। जो लोग देशबन्धुकी स्मृतिका सम्मान करना चाहते हैं वे यदि उनकी इच्छाका पालन न करते तो वह उनका सम्मान करना न होता। मैं यह मानता हूँ कि उनकी स्मृतिको अमर बनानेके लिए उनके पीछे अवशिष्ट हम लोग जो कुछ इकट्ठा कर सकते हैं उसमें से पहले वही काम किया जाना चाहिए जिससे उनकी इच्छा पूरी होती हो । देशबन्धुने जब अपनी सम्पत्ति सौंपी थी तो वे जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं। उन्होंने जानबूझकर उसे राजनैतिक कार्यके लिए नहीं बल्कि धार्मिक कार्यके लिए दानमें दिया था। इसलिए उनके पीछे यहाँ रह जानेवाले लोगोंका कर्त्तव्य इतना ही नहीं है कि हम राष्ट्रके लिए इस घरको ले लें, बल्कि यह भी है कि दान करनेवाला जिस-जिस उद्देश्यके लिए उसका उपयोग करना चाहता था उसको उसी उद्देश्यके लिए काममें लाया जाये। इसलिए मेरी रायमें इस इमारतमें स्त्रियोंको अस्पताल और नर्सोंके शिक्षणकी संस्था बनानेके लिए बंगाल नैतिक-रूपसे कर्त्तव्यबद्ध है। मैंने सुना है कि बंगाली कुछ जगह स्थानीय स्मारक बनानेके लिए रुपया इकट्ठा कर रहे हैं। मुझे आशा है