पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४३२

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जो-कुछ मैं कहना चाहता था, उसके लिए निश्चय ही यह एक बड़ी भूमिका हो गई। पिटका एक तथा केलप्पनके कई पत्र आये हैं। मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि यदि स्थानीय जनताका खयाल कुछ और न हो तो हमें पूर्वी द्वारपर एक सत्याग्रही बिठाये रखना चाहिए। हो सकता है आपका निर्णय कुछ और हो। आप केलप्पनको पत्र लिख दें। वह एक अच्छा और कामका आदमी लगता है।

सस्नेह,

आपका,
बापू

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

 

२४०. पत्र : डब्ल्यू॰ एच॰ पिटको

दौरेपर
१६ जुलाई, १९२५

प्रिय श्री पिट,

आपके लम्बे और दिलचस्प पत्रके[१] लिए धन्यवाद। आपके पत्रके बारेमें मैं फिलहाल समाचारपत्रोंमें कुछ नहीं लिखूँगा। पर मुझे लगता है कि सिद्धान्त और अनुशासनकी दृष्टिसे जहाँ प्रवेश निषिद्ध है वहाँ किसी सत्याग्रहीको तैनात करना आवश्यक है। मेरे विचारसे राज्यकी ओरसे इस सम्बन्धमें एक सुस्पष्ट घोषणा की जानी चाहिए। अस्पृश्योंकी दशा पराश्रितों-सी नहीं होनी चाहिए। पर पहले ही को मैं जल्दीमें कुछ भी नहीं करूँगा और कोई भी अगला कदम उठानेसे पहले आपको लिखूँगा। तथापि मुझे आशा है कि प्रवेश सम्बन्धी निषेध जो अभीतक बरकरार है, बिना किसी सीधी कार्रवाईके शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा। और दूसरे मन्दिरोंके बारेमें क्या रहा?[२]

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ११०९८) की फोटो-नकलसे।

  1. यह पत्र उपलब्ध नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इससे पहले पिटने गांधीजीको एक तार भेजा जो इस प्रकार था : "विस्तारसे लिख रहा हूँ। अभी कोई फैसला न लें।"
  2. पिटके उत्तरके लिए देखिए परिशिष्ट ३। इससे पहले पिटको गांधीजी द्वारा केलप्पनको भेजे तारकी एक प्रति मिली प्रतीत होती है; जिसमें वाइकोम मन्दिरके केवल पूर्वी द्वारपर धरना देनेका सुझाव था; परन्तु यह तार उपलब्ध नहीं है।