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२४१. पत्र : मणिबहन पटेलको

[कालीघाट
कलकत्ता]
गुरुवार [१६ जुलाई, १९२५][१]

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें दूसरी चूड़ियोंकी भी अभी जरूरत हो तो लिखना। डाकसे भेज दूँगा। डाह्याभाई कलकत्तेके राष्ट्रीय मैडिकल कालेजमें पढ़ेगा? वह अच्छा चल रहा दीखता है। अथवा डाह्याभाईकी हार्दिक इच्छा क्या है? मैं इतना काममें फँसा हूँ कि लम्बे पत्र लिख ही नहीं पाता।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो——४ : मणिबहेन पटेलने
 

२४२. प्रस्ताव : स्वराज्यदलकी बैठकमें[२]

कलकत्ता
१६ जुलाई, १९२५

१. स्वराज्यदलकी यह महापरिषद् देशबन्धु चित्तरंजन दासकी असमय मृत्युके कठोर आघातपर समस्त राष्ट्रके साथ दुःखी है और ऐसा अनुभव करती है कि दलने अपना संस्थापक, उसे कठिनाइयोंमें गिरनेसे बचानेवाला, बंगालमें उसे एकके बाद एक विजय दिलानेवाला, दलमें आत्मबलिदान और अनुशासनका मानदण्ड स्थापित करनेवाला, सच्चा मार्गदर्शक खो दिया है। दल उनके ऋणसे कभी उऋण नहीं हो सकता। परिषद् श्रीमती बासन्ती देवी और उनके परिवारके प्रति अपनी संवेदना प्रकट करती हैं।

२. अखिल भारतीय स्वराज्यदलकी महापरिषद् २ मई, १९२५ को फरीदपुरमें दलके दिवंगत नेता देशबन्धु चित्तरंजन दास द्वारा दिये गये भाषणमें प्रकट किये गये हिंसा सम्बन्धी उनके विचारों तथा उसमें हिंसाकी कठोर भर्त्सना, सरकारके साथ सम्मानजनक सहयोग करने और उनकी शर्तोंका पूर्ण समर्थन करती है।

२७–२६
  1. साधन-सूत्रके अनुसार।
  2. सम्भवतः प्रस्तावोंका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था। अखिल भारतीय स्वराज्यदलकी महापरिषद्को बैठक पं॰ मोतीलाल नेहरूकी अध्यक्षतामें १४८, रसा रोडपर हुई थी। गांधीजी और सरोजिनी नायडूको उसमें विशेष तौरपर आमन्त्रित किया गया था।