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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कार्यमें तो अनीति है ही; किन्तु वे एक-दूसरेकी चीजें नहीं चुराते। यदि वे एक-दूसरेसे लेन-देन करते हैं तो उसमें शुद्धता बरतते हैं। क्या गुजराती इतने पतित हो गये हैं कि वे नीतिका इतना पालन भी न करेंगे? मेरी विनती है कि जिन्होंने खादी मण्डलकी उधार रकमें अभीतक न दी हों तो वे जिन रकमोंको मंजूर करते हैं, कमसे-कम उनका हिसाब तो दे ही दें।

सबके-सब ब्रह्मचारी

मेरे अभिमानके कारण कहें या अज्ञानके कारण अथवा दोनोंके कारण कहें, मैं यह खयाल करता था कि अपने तमाम लड़के-लड़कियोंको ब्रह्मचारी रखनेका प्रयत्न करनेवाला मैं शायद अकेला ही हूँगा अथवा मेरे कुछ साथी ही होंगे। परन्तु मेरा यह गर्व चूर-चूर हो गया है और मेरा अज्ञान दूर हो गया है। यहाँ मेरे साथ जो स्वयंसेवक हैं उनमें एक यहाँकी प्रान्तीय कमेटीके मन्त्रीका भतीजा है। वह स्वयं ब्रह्मचारी है, यही नहीं, बल्कि उसके पिताने निश्चय किया है कि वे उसके शेष भाइयोंको भी ब्रह्मचारी रखेंगे। जो लड़का स्वयं ब्रह्मचारी न रहना चाहे वे उसके लिए योग्य कन्या खोजनेके लिए तैयार हैं; वे उनमें से किसीपर जब करना नहीं चाहते। वे अभी अपने लड़कोंको ऐसी ही तालीम दे रहे हैं जिससे वे ब्रह्मचर्यका पालन करें। उनके सब बेटे जवान हैं और अपने-अपने काम-धन्धेमें लगे हैं। वे अबतक स्वेच्छासे ब्रह्मचारी हैं। मैं देखता हूँ कि बंगालमें इसी तरह कन्याओंको भी तालीम दी जाती है। यद्यपि उनकी संख्या कम है तथापि प्रयत्न तो किया ही जा रहा है। यह प्रयत्न पाश्चात्य सभ्यताके प्रभावका फल नहीं है, बल्कि ऐसी चेष्टा करनेवाले माता-पिता केवल धार्मिक भावसे प्रेरित होकर ही ऐसा कर रहे हैं।

दाहिना बनाम बायाँ

कोई भी निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि दाहिने और बायें हाथमें भेद कैसे आरम्भ हुआ और कुछ कामोंको दाहिने हाथसे और कुछको बायें हाथसे ही करनेकी प्रथा क्यों पड़ी? परन्तु परिणाम तो हम देखते ही हैं कि बहुतेरे कामोंमें बायें हाथका उपयोग नहीं किया जाता। इससे वह बेकाम हो गया है और हमेशा दाहिने हाथसे कमजोर भी रहता है।

किन्तु जापानमें यह बात नहीं है। वहाँ सभीको लड़कपनसे ही दोनों हाथोंसे एक-सा काम लेना सिखाया जाता है। इसलिए उनकी शारीरिक उपयोगिता हमारी शारीरिक उपयोगितासे अधिक हो जाती है।

मैं ये विचार अपने वर्तमान अनुभवके फलस्वरूप पाठकोंके लाभार्थ उपस्थित करता हूँ। मुझे जापानियोंके सम्बन्धमें इस बातको पढ़े कोई २० सालसे अधिक हो गये हैं। मैंने जबसे यह बात पढ़ी है तभीसे बायें हाथसे लिखनेका अभ्यास आरम्भ कर दिया था और फलतः मुझे इसकी थोड़ी-बहुत आदत हो गई है। मैंने यह मानकर कि मुझे अवकाश नहीं है, बायें हाथसे दाहिनेके बराबर तेजीसे लिखनेका मुहावरा नहीं डाला। मुझे इसपर इस समय अफसोस हो रहा है। मेरा दाहिना हाथ मेरी