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उद्धार कब हो सकता है?

इच्छाके अनुसार लिखनेका काम नहीं देता; उसमें अधिक लिखनेसे दर्द होने लगता है। मुझे यह लोभ अभीतक बना ही हुआ है कि जहाँतक हो सके, मैं अपनी हाथसे लिखनेकी शक्तिको कायम रखूँ। इस कारण मैंने अब फिर बायें हाथसे लिखना शुरू किया है। अब मुझे इतना अवकाश तो है नहीं कि मैं सब कुछ बायें ही हाथसे लिखूँ और दाहिने हाथकी जैसी तेजी उसमें ला दूँ। फिर भी वह कठिनाईके समयमें मुझे मदद दे रहा है। इस कारण मैं अपना यह अनुभव पाठकोंके सामने पेश करता हूँ। जिन्हें अवकाश और उत्साह हो वे बायें हाथसे भी अभ्यास करें। समय आनेपर उसकी उपयोगिता सभी सिद्ध कर सकेंगे। बायें हाथसे केवल लिखनेका ही नहीं, दूसरी क्रियाओंका भी अभ्यास कर लेना लाभप्रद है। क्या हमने कितने ही ऐसे लोग नहीं देखे जिनके लिए चोट आदि लगनेके कारण दाहिना हाथ बेकाम हो जानेपर बायेंसे खाना खाना भी मुश्किल हो जाता है? इस लेखका सार कोई यह तो हरगिज न निकाले कि वे बायें हाथसे अभ्यास करनेके पीछे पागल ही हो जायें। साधारण तौरपर बायें हाथसे जितना अभ्यास किया जा सकता है, मैं इस टिप्पणीके द्वारा उतना ही करनेकी सलाह दे रहा हूँ। शिक्षकोंके लिए यह वांछनीय मालूम होता है कि वे यह सुझाव देकर बालकोंको लाभ पहुँचायें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १९-७-१९२५
 

२४७. उद्धार कब हो सकता है?

एक 'सेवक' ने अपने पत्रमें लिखा है :[१]

इसमें से मैंने वह भाग निकाल दिया है जिसमें 'सेवक' ने देशी राज्योंके सम्बन्धमें बहुत-सी बातें लिखी थीं।

श्रद्धा किसीके देनेसे नहीं मिलती। इसलिए 'सेवक' को अपनी वांछित श्रद्धा स्वयं ही प्राप्त या अनुभव करनी होगी। परन्तु मैं उनका विचार-दोष बता सकता हूँ। राष्ट्रके कर्म-फलका अर्थ है उसके समस्त कर्मोके योगका परिणाम। इसके अतिरिक्त यहाँ स्वराज्यका अर्थ संकुचित किया गया है। स्वराज्यका अर्थ है राजतन्त्रका अंग्रेजोंके हाथसे जनताके हाथमें आना। अतः यहाँ तो अंग्रेजों और भारतीयों दोनोंकी समाजनीति अथवा राजनीतिका कर्म-फल निकालना होगा। समाजनीतिमें हमारे समाजकी संगठन शक्ति और निर्भयता आदि गुणोंका समावेश होता है। ये गुण जब प्रजामें आ जायें तब हम अपनी शासन-व्यवस्था अपने हाथमें ले सकते हैं। फिर इस समय तो स्वराज्यका अर्थ 'ब्रिटिश भारतकी स्वाधीनता'-मात्र है। उसका असर देशी-राज्योंपर बहुत होगा, इसमें कोई शक नहीं। फिर भी देशी राज्योंका प्रश्न अलग रहेगा

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें लेखकने लिखा था कि देशमें इस समय बहुत-सी बुराइयों फैली हुई हैं। जबतक ये बुराइयाँ नहीं जातीं तबतक देशका उद्धार कैसे होगा? क्या व्यक्तिकी तरह समाजको भी उसके कर्मोंका फल नहीं मिलता?