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अस्पृश्योंके साथ बातचीत

आपके पास आयें जिनमें आपके लिए विशेषाधिकारोंकी मांग की गई हो तो आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको दोनों ही को परे हटा देना चाहिए।

आप ठीक कहते हैं। मुझे ऐसे धर्म-प्रचारक मिले हैं। हमारी निर्योग्यतायें विभिन्न प्रकारको हैं और हमें सभी स्थानोंपर कठिनाई झेलनी पड़ती है।

ये कठिनाइयाँ दूर हो जायेंगी। इस क्षेत्रमें बहुतसे कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। बहुतसे उच्चवर्णके हिन्दू अपना सारा समय इसी समस्याको हल करने में लगा रहे हैं। आपको उस भलमनसाहतपर भी भरोसा रखना पड़ेगा जो सहज ही मनुष्यके स्वभावमें रहती है। जब आप अपनेको शुद्ध कर लेंगे तब आपके विरोधी भी निश्चय ही अपने कर्तव्यके प्रति जागरूक हो जायेंगे। मुझे दक्षिण आफ्रिकामें यही निर्योग्यतायें भोगनी पड़ी थीं, जिनको आप भोग रहे हैं और मैं चाहता हूँ कि आप भी वैसा ही करें जैसा मैंने किया था। आप जानते हैं कि मैंने क्या किया था? यूरोपीय नाइयोंने मेरे बाल काटनेसे इनकार कर दिया था। मैं एक दिन सुबह एक कैची ले आया और शीशेके सामने खड़े होकर अपने बाल काटने लगा। उसी समय एक यूरोपीय मित्र अन्दर आये और उन्होंने मुझे अपने बाल बनाते हुए देखा। उन्होंने पूछा — 'आप क्या कर रहे हैं?' मैंने जवाब दिया — 'यदि यूरोपीय नाई मेरी सेवा नहीं करते तो मैं स्वयं अपनी सेवा करूँगा।' इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं आपके बाल काट दूंगा। और मेरे बाल बड़े ही मज़ेदार ढंगके कट गये; बालोंका एक गुच्छा यहाँ खड़ा था तो दूसरा वहाँ ; बीचमें जगह खाली थी। बच्चोंको स्कूल भेजने में भी मुझे यही कठिनाई उठानी पड़ी। उन्होंने कहा — 'आपके बच्चोंके लिए विशेष रियायत की जायेगी और उन्हें अंग्रेजी स्कूलमें जाने दिया जायेगा।' मैंने जवाब दिया, 'नहीं, जबतक स्वच्छ रहनेवाले सभी भारतीय बच्चोंको अंग्रेजी स्कूलोंमें जानेकी छूट नहीं मिल जाती तबतक मैं अपने बच्चोंको वहाँ नहीं भेजूंगा।' और मैंने अपने बच्चोंको बिना स्कूली शिक्षाके ही रहने दिया । मुझपर यह भी आरोप लगाया जाता था कि मैं अपने बच्चोंकी शिक्षाकी उपेक्षा कर रहा हूँ। उफ! वहाँ बहुत- सी निर्योग्यतायें थीं। कठिनाइयोंके बारेमें मैं भी आपके समान ही महसूस कर सकता हूँ, क्योंकि मुझे भी उनसे गुजरना पड़ा है। मैं एक बार एक बसमें चढ़ा और एक सीटपर बैठ गया। उस सीटसे, जो मुझे दी गई थी, उठनेको कहा गया और उठनेसे इनकार करनेपर मुझे लातोंसे मारा गया और मैं बर्बरतापूर्वक घायल कर दिया गया। उस आदमीके बर्तावसे अन्य मुसाफिर इतने उद्विग्न हुए कि उन्होंने उसे बुरा-भला कहा और उसने शर्मके मारे ही अपना हाथ रोका। किन्तु आप जानते ही हैं कि मैंने बदला लेकर नहीं, स्वयं कष्ट सहन करके ही समय आनेपर इन पूर्वग्रहोंको दूर कर दिया। मेरा निश्चित रूपसे विश्वास है कि समुद्र-पारके हमारे देशवासियोंके साथ जो दुर्व्यवहार होता है वह इसी दुर्व्यवहारका प्रतिशोध है जो आपके साथ भारतमें होता है। जब मैं प्रत्येक व्यक्तिसे बार-बार यह कहता हूँ कि

१.देखिए आत्मकथा, भाग ३ अध्याय ९ ।

२. देखिए आत्मकथा, भाग २ अध्याय ९।