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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि डा० राय एक ऐसे व्यक्ति हैं जो हमारे लिए जबर्दस्त संघर्ष कर रहे हैं। उनके हृदयमें हमारे लिए गहरी सहानुभूति है। किन्तु मुझे दूसरोंपर ऐसा भरोसा नहीं। वस्तुतः देशबन्धु दास भी है, किन्तु वे भी जितना-कुछ कर सकते हैं, उतना नहीं कर रहे हैं।

लेकिन मैं विश्वास दिलाता हूँ कि उन्हें आप लोगोंसे कोई शिकायत नहीं है और वे भी उतना ही सुधार चाहते हैं जितना कि मैं चाहता हूँ। क्या आप जानते हैं कि वे उतनी दिलचस्पी क्यों नहीं ले सकते, जितनी कि मैं लेता हूँ।

साहब, मैं जानता हूँ, उनको बहुत-से काम हैं और उनके पास इतना समय नहीं।

हाँ, यही बात है। एक और बात भी है। वे अनुभव करते हैं कि जबतक हम फौरन राजनीतिक कार्यवाही करके स्वतन्त्रता नहीं प्राप्त कर लेते तबतक कोई दूसरा काम नहीं किया जा सकता। उनके और मेरे बीच यही एक भेद है। किन्तु वे इस समस्याको लेकर सचमुच बड़े चिन्तित हैं और वे भी उतनी ही जल्दी इस अभिशापको दूर करना चाहते हैं जितनी जल्दी कि आप और मैं।

मैं मानता हूँ। किन्तु तब क्या आप चाहते हैं कि हम केवल सुधारकोंपर निर्भर रहें? आप जानते हैं, हुआ ऐसा है कि जब भी हमने उनके विरुद्ध संघर्ष किया, वे झुक गये हैं; और जब भी हम हाथपर-हाथ धरे बैठे रहे, उन्होंने हमारी उपेक्षा की, ... कहते हैं कि हमें उनसे कोई भी सरोकार रखनसे इनकार कर देना चाहिए। हमें उनसे सामाजिक मेल-मिलाप रखनेसे भी इनकार कर देना चाहिए। हमें उनसे उसी प्रकार जल लेनेसे इनकार कर देना चाहिए जैसे कि वे हमसे लेनेसे करते हैं।

आप जानते हैं, ऐसा कहनेवाला बदहवास है। आप ऐसा कोई काम न करें। आप सवर्ण हिन्दुओंको और भी कट्टर विरोधी बना लेंगे। आप उनके प्रति चाहे कोई प्रेम अनुभव न करें। किन्तु मेरा निश्चित विचार है कि आप उनके प्रति अपनी सारी घृणाको दूर कर सकते हैं। आप गरिमापूर्ण रुख अपनाइए। गरिमा ही ठीक रहेगी, बदला लेनेकी भावना नहीं।

हम इन परिस्थितियोंमें राष्ट्रीय कार्यक्रममें कैसे भाग ले सकते हैं?

क्यों नहीं ? आजका राष्ट्रीय कार्यक्रम है क्या ? हिन्दुओं द्वारा अस्पृश्यता- निवारण, खद्दर और हिन्दू-मुस्लिम एकता। मेरे विचारमें ये तीनों बातें आपकी कठिनाइयोंका हल निकालने में सहायक होंगी। यहाँतक कि हिन्दू-मुस्लिम एकताका अर्थ भी अस्पृश्यताके प्रश्नको थोड़ा-बहुत हल करना ही है। और खद्दर हमको इस प्रकार एक कर सकता है जिस प्रकार अन्य कोई वस्तु नहीं कर सकती। हाँ, यदि लोग स्वराज्यकी कोई ऐसी योजना लेकर आपके पास आयें जिसमें आपके लिए कोई व्यवस्था न हो और वे केवल तात्कालिक राजनीतिक दाँवपेचोंकी दृष्टिसे ही आपकी सहमति चाहते हों, अथवा यदि कोई धर्मप्रचारक तरह-तरहकी ऐसी योजनायें लेकर

१. साधन-सूत्रमें नाम छोड़ दिया गया है।