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९. भाषण : मानपत्रके उत्तरमें

[३ मई, १९२५ या उससे पूर्व]
 

आपने मुझे जो मानपत्र दिया है, उसके लिए मैं आपका आभार मानता हूँ। आपने यहाँतक आनेका जो कष्ट उठाया है मैं उसके लिए आपका और भी अधिक आभारी हूँ। मैंने आपको जो सन्देश भेजा था उसमें कुछ भावना मनोविनोदकी भी थी। असल में मैं आपको सूत कातनेका पदार्थ-पाठ देना चाहता था और यह बताना चाहता था कि चरखा चलाना हिन्दुस्तानके उद्धारके लिए अनिवार्य धर्म है। आप केवल पूनीमें से तार निकलता देख रहे हैं; किन्तु मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस तारके निकलने के साथ-साथ हिन्दुस्तानके भाग्यका निर्माण होता जा रहा है। हर तारके साथ मेरा यह विश्वास अधिकाधिक दृढ़ होता है कि चरखेके बिना हमारे देशका उद्धार न होगा। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप बातें करने, गप्पें मारने, खेलने-कूदने या बेकार घूमने में जो समय लगाते हैं उसमें से रोज केवल आधा घंटा निकालकर सूत काता करें।

हिन्दू धर्म में अस्पृश्यताके विकारके घुस आनेसे उसका तत्त्व और राष्ट्रीयताका मर्म अन्दरसे खोखला हुआ जा रहा है। यह छूत महामारीसे भी अधिक फैलती है। इसका पारसी, ईसाई और मुसलमानोंपर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। फलतः हम सभी हिन्दुस्तानसे बाहरके देशोंमें अस्पृश्य हो गये हैं। यह बुराई कैसे दूर की जा सकती है ? इस सम्बन्धमें जो सज्जन मुझसे मिले, मैंने उनसे कहा कि यह कार्य तो सवर्ण लोगोंके प्रयत्नोंसे ही सम्भव है। इसपर उन्होंने मुझसे सरल भावसे पूछा कि यदि आप हमें खेलमें केवल मुहरा बना डालें तो? शायद आप स्वराज्य मिलने- पर हमसे यह कह दें कि तुम अपने रास्ते जाओ और हम अपने रास्ते जाते हैं तब हमारा क्या होगा? उनकी इस आलोचनामें सत्य था। हमें इन लोगोंको विश्वास दिला देना चाहिए कि अन्त्यजोंके उत्थानको प्रवृत्तिमें कोई भी राजनीतिक उद्देश्य नहीं है। हमारा हेतु केवल धार्मिक कर्त्तव्यका पालन करना और प्रायश्चित्त करना है। यदि हम इस ऋणको अदा न करेंगे तो हम ईश्वरके सम्मुख अपराधी ठहरेंगे। तब हम न हिन्दू रह जायेंगे और न मनुष्य ही।

एक युवकने मुझसे पूछा है कि यदि मैं अन्त्यजोके उत्थानका कार्य करते हुए जातिसे बहिष्कृत कर दिया जाऊँ तो क्या होगा? मैंने कहा कि यदि जातिमें तुम्हारी

१. यह मानपत्र फरीदपुरके छात्र सम्मेलनमें आये हुए छात्रों द्वारा दिया गया था।

२. यह मानपत्र एक नाट्यशालामें, जहाँ छात्र-सम्मेलन हो रहा था, दिया जानेवाला था; किन्तु गांधीजीने श्री जे० बी० कृपलानीके हाथ सन्देश भेजा कि अपने शिविरमें ही, जहां वे उस समय चरखा चला रहे थे, मानपत्र लेना चाहते हैं। इसलिए छात्र गांधीजीके शिविरमें गये और वहां गांधीजीने सूत कातते-कातते उनके सम्मुख यह प्रवचन दिया था।

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