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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह सामान्यतः तो नहीं कर सकती; किन्तु असामान्य स्थितियोंमें कांग्रेसके विशुद्ध लाभकी खातिर परिवर्तन अवश्य कर सकती है। मुख्तार या आढ़तिया मालिककी बाँधी हुई मर्यादासे बाहर नहीं जा सकता। किन्तु मुख्तार अपनी जोखिमपर और मालिकके लाभके लिए बहुत-कुछ करनेका साहस कर सकता है। उसके लिए जोखिम यह है कि मालिक उसका मुख्तारनामा रद्द कर सकता है। यदि मुख्तारको अपने जोखिमपर काम करते हुए आर्थिक हानि हो जाये तो वह उसे अवश्य सहन करेगा, क्योंकि कोई मुख्तार अपने मालिककी मंजूरीके बिना उसे जोखिममें तो नहीं डाल सकता। संक्षेपमें कहें तो अनुमति या अधिकारके बिना किये कार्यका लाभ उठानेका हक तो मालिकको है; किन्तु उससे हुई हानिको सहन करना उसका कर्त्तव्य नहीं है। उसी नियमसे यदि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अपनी जिम्मेदारीपर बिना अधिकारके चाहे जैसा परिवर्तन करे तो उसके सामने दो जोखिमें आयेंगी। एक जोखिम यह है कि कांग्रेस उसके इस कार्यको अनुचित ठहराकर उनकी निन्दा कर सकती है। दूसरी जोखिम यह है कि यदि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी संकटके समय नियमसे परे हटकर जो कार्य करना उचित है उसे न करे तो उस हदतक वह भीरु और अशक्त समझी जायेगी।

किन्तु ऐसे परिवर्तन सदा तभी किये जाते हैं जब वे सर्वसम्मत हों। यदि उनका विरोध करनेवाले सदस्योंकी खासी संख्या हो तो ऐसा परिवर्तन करना अनियमित होनेके अतिरिक्त अनुचित भी है।

सदस्य मेरी सलाह या सिफारिशसे कुछ भी न करें। वे कांग्रेसका अर्थात् लोगोंका हित समझकर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें चाहे जो सर्वसम्मत परिवर्तन करें। मैं चाहता हूँ कि बैठकमें कोई भी सदस्य स्वराज्यवादी और अपरिवर्तनवादीकी वृत्ति लेकर न आये। सभी कांग्रेसके सदस्यके रूपमें, अच्छा हो भारतीयके रूपमें, आयें। मुझे आशा है कि इस महत्त्वपूर्ण बैठकमें सभी सदस्य उपस्थित होंगे। मैंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सदस्योंको व्यर्थ कष्ट कभी नहीं दिया है। मैं उनको इस समय जो कष्ट दे रहा हूँ, वह विवश होकर ही दे रहा हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-७-१९२५