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समान है और वह मनुष्यकी अवनति करता है। आजकल जातिका जो अर्थ होता है वह न वांछनीय है और न शास्त्रीय । आज जिस अर्थमें उसका प्रयोग होता है उस अर्थमें यह शब्द शास्त्रमें है ही नहीं। हाँ, वर्ण है; परन्तु वे चार ही हैं। अब तो अगणित जातियाँ हैं और उन जातियोंमें भी विभाग हो गये हैं और उनमें परस्पर बेटी-व्यवहार बन्द । ये लक्षण उन्नतिके नहीं, अवनतिके हैं। नीचे दिये गये पत्रको पढ़कर मेरे मनमें ये विचार आ रहे हैं।

यह बात यदि सच हो तो दुःखद है। अध्यक्षपद और मन्त्रिपदके लिए झगड़ा क्यों होना चाहिए? सूरती, आगरी, दमणी इत्यादि भेद किसलिए? मैं जब लाड- युवक मण्डलकी सभामें गया था तब मुझपर उसकी अच्छी छाप पड़ी थी। अध्यक्ष- पद सेवाके लिए होता है, मानके लिए कदापि नहीं। मन्त्री तो समाजका नौकर होता है। यदि इस स्थानके लिए स्पर्धा हो भी तो वह मीठी होनी चाहिए। आशा है कि दोनों पक्ष आपसमें सद्भावसे यह झगड़ा मिटा लेंगे। वणिक्-मात्र मिलकर एक जाति क्यों न हों? ऐसा धर्म कहीं नहीं बताया गया है कि वणिक् जातिमें परस्पर कन्याका लेनदेन नहीं हो सकता। मैं अगर उपजातियोंको कुछ हदतक मानता हूँ तो उसका कारण केवल समाजकी सुविधा है। परन्तु जब पूर्वोक्त घटनाओंका अनु- भव होता है तब यही इच्छा होती है कि ऐसे बन्धनोंको तोड़कर उनसे प्रयत्नपूर्वक मुक्ति करना और कराना चाहिए।

'मूर्तिपूजक' और 'मूर्तिभंजक'

प्रसंग आनेपर मैंने अपने एक भाषणमें कहा था कि मैं मूर्तिपूजक हूँ और मूर्तिभंजक भी हूँ। यह बात जिस भाषणमें मैंने कही थी यदि वह पूरा छापा गया होता तो इसका अर्थ अच्छी तरह समझमें आ गया होता। मैंने भाषणकी रिपोर्ट नहीं देखी है। एक सज्जन मेरे विचारोंको उद्धृत करते हुए लिखते हैं :

"मुझ-जैसे लोगोंको जिनकी श्रद्धा मूर्तिपूजासे उड़ गई है, पर फिर भी जो ज्यादातर मूर्तिपूजाके रूपको (जिस तरह कि मृत पिताके चित्र या मृत मित्रके पत्रको) आदरकी दृष्टिसे देखते हैं।"

आप इन शब्दोंका अर्थ समझाकर यदि मार्गदर्शन करेंगे तो बड़ा उपकार होगा।

यहाँ मूर्ति शब्दके अर्थ पृथक्-पृथक् हैं। यदि मूर्तिका अर्थ प्रतिमा लिया जाये तो मैं मूर्तिभंजक हूँ। यदि मूर्तिका अर्थ ध्यान करने अथवा श्रद्धा प्रकट करने या स्मरण कराने का साधन लिया जाये तो मैं मूर्तिपूजक हूँ। मूर्तिका अर्थ केवल आकृति नहीं है। जो व्यक्ति किसी पुस्तककी पूजा आँखें मूंदकर करता है वह भी मूर्तिपूजक अथवा बुतपरस्त है। बुद्धिका प्रयोग किये बिना, सारासारका विवेचन किये बिना,

१. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र-लेखकने कहा है कि उसकी लाड' जातिमें कई उपजातियों है और उनमें कभी-कभी इतना तीव्र मतभेद हो जाता है कि वे परस्पर लड़ बैठते हैं।

२. लाड जातिकी उपजातियों, जिनका सम्बन्ध क्रमशः सूरत, आगरा और दमनसे है।