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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तजवीज किये गये हैं, किन्तु उनमें से एक भी फलीभूत नहीं हुआ और एक भी ऐसा नहीं है जो फलीभूत होने लायक हो। इस स्थितिका क्या कारण है ?

इस अ०भा० संस्थाको इस सम्बन्धमें विचार करना होगा। परन्तु विचार करेगा कौन? अध्यक्ष, मन्त्री, या समिति? विचारके लिए अध्ययनकी आवश्यकता है। गायोंकी कैसी दशा है ? बैलोंकी कैसी दशा है? उनकी संख्या कितनी है? वे सचमुच भारतमें भाररूप हैं या उनका उपयोग होता है? उनके वधके कारण क्या हैं ? उनकी दुर्बलताके कारण क्या हैं ? हमें ऐसे अनेक प्रश्नोंपर विचार करना होगा।

इतना समय कौन दे? इसमें इतनी दिलचस्पी किसे है? बिना दिलचस्पीके काम किस तरह हो सकता है? इसीलिए मैंने कहा है कि गोरक्षाके लिए तप, संयम, अध्ययन आदिको आवश्यकता है। इसलिए जो लोग, गो-सेवक होना चाहते हों उनसे मैं केवल धनकी ही आशा नहीं रखता, बल्कि विचार और अध्ययनकी भी आशा रखता हूँ।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३-५-१९२५


११. टिप्पणियाँ

काठियावाड़का धन-संग्रह

भाई मणिलाल कोठारी २०,००० रुपये इकट्ठे करनेके लिए काठियावाड़में घूम रहे हैं। उनके तारसे मालूम होता है कि उन्होंने निम्न राशियाँ और एकत्र की है :

माणावदरमें और चन्दा
१,१०० रुपये
 
चोरवाडमें भाई जीवनलालसे
२,५०० रुपये
 
चोरवाडमें अन्य लोगोंसे
२०० रुपये
 
वेरावलमें
२,५०० रुपये
 
_________
 
कुल ६,३०० रुपये
 
_________
 

मुझे आशा है कि काठियावाड़में निश्चित समयके भीतर पूरा रुपया इकट्ठा हो जायेगा। मैं बम्बईवासी काठियावाड़ियोंके दानको राह देख रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि सब काठियावाड़ी इस बातको ध्यानमें रखें कि २०,००० रुपये की यह पूरी रकम काठियावाड़में ही काममें लाई जायेगी।

जातिबन्धन

मैंने जातिबन्धनको संयमकी वृद्धिमें सहायक मानकर स्वीकार किया है। परन्तु आजकल जाति संयममें सहायक नहीं है बल्कि केवल बन्धन बनकर रह गई दिखाई देती । संयम मनुष्यको शोभा देता है और स्वतन्त्र बनाता है। बन्धन एक बेड़ीके