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टिप्पणियाँ

केवल आर्थिक लाभके निमित्त तो कभी नहीं किया जाता। उसके पीछे कोई-न-कोई सिद्धान्त होता है; इसलिए वह लोकहितार्थ किया जाता है। पेटलादके सत्या- ग्रहके सम्बन्धमें स्वीकार किया गया प्रस्ताव मेरे सम्मुख है। इससे मुझे मालूम हुआ है कि लोगोंकी मान्यताके अनुसार नया बन्दोबस्त कानूनके मुताबिक नहीं था और लोगोंकी मांग इतनी ही थी कि गायकवाड़ सरकार इस सम्बन्धमें जाँचके लिए अधि- कारियोंकी एक समिति नियुक्त करे। समिति नियुक्त कर दी गई है और उसकी नियुक्ति होते ही जनताकी जीत हो गई। उस जीतपर खुशी भी मनाई गई थी। अब जो अन्तिम निर्णय किया गया है उसमें सिद्धान्तकी दृष्टिसे कहने योग्य कोई बात नहीं जान पड़ती। दीवान साहबने प्रतिनिधियोंको बुलाने की शिष्टता भी दिखाई और अपना निर्णय उन्हें दिखा देनेके अनन्तर ही प्रकाशित किया। इस निर्णयमें आर्थिक लाभ बहुत नहीं दिखाई देता। वह भी रहा होता तो अधिक ठीक होता। किन्तु सिद्धान्तकी रक्षा हो जाने पर निस्सन्देह केवल थक लाभके लिए संघर्ष नहीं छेड़ा जा सकता। सत्याग्रहके प्रस्तावमें आर्थिक लाभकी तो माँगतक नहीं की गई थी। उसमें केवल न्यायकी मांग की गई थी। इस स्थितिमें सैनिकोंका प्रतिनिधियोंके स्वीकार किये हुए प्रस्तावको अंगीकार न करना उचित नहीं है। इसलिए मुझे आशा है कि जिन लोगोंने इस निर्णयको माननेसे इनकार करने की भूल की है, वे अपनी भूल समझेंगे और उसे सुधार लेंगे।

एक शिक्षककी कताई

वराडके राष्ट्रीय कुमारमन्दिरके आचार्य रा० झवेरभाईने एक पत्रमें लिखा है :

मैं श्री झवेरभाई पटेलको इतने अधिक उत्साहके लिए धन्यवाद देता हूँ। दूसरे शिक्षकोंको उनका अनुकरण करना चाहिए। मुझे श्री झवेरभाईको एक सुझाव देनेकी इच्छा हो रही है। तीन लाख गज सूतका वजन १८ सेर हो तो इसका अर्थ हुआ छ: अंकका सूत। बारडोलीकी रुई तो अच्छी होती है। फिर वह हाथसे ओटी और हाथसे धुनी हुई हो तो उससे बीस अंकका सूत सहज ही काता जा सकता है। सम्भव है कि बीस अंकका सूत कातने में अधिक सावधानीकी जरूरत हो और उतना सूत कातनमें समय भी कुछ अधिक लगे। उसमें समय चाहे अधिक लगता हो, किन्तु २० अंकका सूत कातने में रुईकी बचत होती है। इतना ही नहीं, अब हमें गुजरातमें भी बारीक सूत कातना आरम्भ करनेकी जरूरत है। जो लोग प्रेम और लगनसे सूत कातते हैं, सबसे पहले उन्हींसे बारीक सूत कातनेकी आशा की जा सकती है। झवेरभाई-जैसे लगनसे कातनेवाले भाई और बहिन तो अब गुजरातमें काफी संख्यामें मिल जाते हैं। मैं उनका ध्यान बारीक सूत कातनेकी ओर खींचता हूँ। वे स्वयं मोटी खादी पहनना चाहें तो भले ही खरीद कर पहिने और अपना काता हुआ बारीक सूत शौकीन भाइयों और बहनोंके लिए दे दें। मैं मानता हूँ कि खादी-मण्डल

१. यहाँ नहीं दिया गया है। लेखकने इसमें लिखा था, “मैने स्वयं चार महीने में ७ मन कपास चुनी, ओटो, धुनी और उसकी पूनियाँ बनाई । इसमें से लगभग १८ सेर (तीन लाख गज) सूत मैंने स्वयं काता है। मैं इस महीनेमें अपना अवकाशका सारा समय सूत कातनेमें ही लगाना चाहता हूँ।