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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बुनने योग्य बारीक सूत लेकर मोटे सूतकी खादी देने का काम सहज ही कर सकता है। यदि ऐसा किया जाये तो बारीक सूत कातनेवाले मध्यम वर्गके लोग, जो स्वयं मोटी खादीसे सन्तुष्ट रहते हैं, बारीक खादी गुजरातमें ही तैयार करने में अच्छा योगदान दे सकते हैं।

वृद्धाका प्रमाणपत्र

मैं यह अंश अमरेली खादी कार्यालयसे प्राप्त एक पत्रसे उद्धृत कर रहा हूँ :

यह भावना एक ही वृद्धाकी नहीं है, बल्कि बहुतोंकी है। मैंने कितनी ही वृद्धाओंके मुंहसे ये शब्द सुने हैं, 'चरखा तो बरकत देता है।' विधवाओंका तो यह "सहारा” ही है। बहुत-सी विधवाओंका कहना है कि दुखियोंका शरणदाता तो चरखा ही है। एक मित्रको जब क्रोध आता है तब वे चरखेको ढूँढ़ते हैं और उसकी शान्त- गतिसे उनकी आत्माको शान्ति मिलती है। ऐसा अनुभव सभीको नहीं होता, यह स्वाभाविक है। 'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।'

खादीका प्रचार कैसे बढ़े?

नेलौर तमिल-तेलुगू प्रदेशका एक भाग है। वहाँके खादीप्रचारके सम्बन्धमें एक भाई लिखते हैं :

जहाँ खेती करना बहुत लाभदायक है, वहाँ भी लोगोंको सूत कातनेके लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। वे मार्चसे अक्तूबरतक अर्थात् आठ महीने मजे में कताई कर सकते हैं। और उससे प्रति मास ५ रुपयके हिसाबसे आय हो सकती है। सूत कातनेवाली स्त्रियाँ विदेशी कपड़े पहनती हैं, यह बात दुःखजनक है। किन्तु इसका उपाय तो यह है कि जब सभ्य समझे जानेवाले लोग अपने हाथकते सूतका बना कपड़ा ही पहनने में गौरव और प्रतिष्ठा समझने लगेंगे तब ये बेचारे गाँवोंके लोग भी, जो शहरी लोगोंका अनुकरण करनेवाले होते हैं, हाथकते सूतका कपड़ा पहनने में अपनी प्रतिष्ठा मानने लगेंगे। असल बात यह है कि सूत कातनेवाली स्त्रियाँ सभी प्रदेशोंम ऐसा नहीं करतीं। मैं जिन गाँवोंमें गया हूँ उनमें मैंने देखा है कि सूत कातनेवाली स्त्रियाँ अपने हाथसे काते सूतके बने कपड़ेके अलावा दूसरा कोई कपड़ा नहीं पहनतीं। जिन गांवों में पैसा जरूरतसे ज्यादा है, यह बात वहाँकी स्त्रियोंपर लागू होती है।

ध्यान देने योग्य दूसरी बात यह है कि जहाँ स्त्रियाँ स्वयं ही सूत कातनेका आग्रह करती हैं वहाँ वे अच्छी पूनियाँ बनानेकी व्यवस्था कर लेती हैं। इस विवरणसे यह बात स्पष्ट होती है कि वे धुनिएको बुलाकर उससे सिर्फ धुनाईका काम करा लेती हैं। वे सामने खड़े होकर अपने सन्तोषके लायक काम करवा लेती हैं और फिर पूनियाँ बनानेका काम फुर्सतके वक्त स्वयं करती हैं। अच्छी पूनियाँ बनानेके लिए

१. यहां नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया था कि आज सस्ती पूनियाँ खरीदनेके लिए, लोगोंकी भीड़ उमड़ पड़ी थी। इसमें एक ६० सालकी वृद्धा भी थी। वह बेहद खुश थी, क्योंकि वह अव काम कर सकती थी और पराश्रित नहीं रहना चाहती थी।

२. पत्र यहीं नहीं दिया गया है।