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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किन्तु जबतक वह सही दिशामें चलना शुरू नहीं करता तबतक मैं ऐसा नहीं कर सकता। इसलिए जबतक अंग्रेज सही दिशामें चलना शुरू नहीं करता तबतक मेरा उसके साथ बात करनेका भी क्या फायदा, क्योंकि उसने जघन्यतम अपराध किया है — उसने मेरे चरखेपर डाका डाला है।

किन्तु मैं उसपर आरोप किस मुंहसे लगाऊँ, जब कि मेरे देशवासी स्वयं आप लोग आधा घंटा भी चरखा चलानेसे इनकार करते हैं; जब आप ही सन्देश भेजते है या कभी-कभी लिखते हैं कि इस मूर्ख गांधीने हमारे ऊपर यह घृणित कताई सदस्यता थोप दी है। हमें इससे छुटकारा पाना चाहिए, क्योंकि इसने हमपर यह बेमत- लबका भार डाल दिया है। किन्तु सवाल यह है कि जब वह ईश्वरके नामपर, देशके लिए कातनेको कहता है, चाहे वह आधा घंटा ही क्यों न हो, तब क्या वह आपसे कोई ऐसा अजूबा करतब करनेको कहता है जो आपके सामर्थ्य के बाहर हो? जब वह आपसे कहता है कि आप सिरसे पाँवतक हाथ-कते और हाथ-बुने कपड़े पहनें, तब क्या वह आपसे कोई ऐसा काम करनेको कहता है, जिसे आप नहीं कर सकते? यदि आप इस छोटी-सी व्यावहारिक चीजपर भी अमल नहीं कर सकते तो मैं आपसे क्या कहूँ, मैं आपके साथ कैसा व्यवहार करूँ, अथवा मैं अपना स्वराज्य कैसे प्राप्त करूँ ? वे आपपर, बंगालियोंपर दोषारोपण करते हैं कि आपमें व्यावहारिकता नहीं है; और कुछ हदतक वे सच भी कहते हैं। हम सब-कुछ चाहते हैं, किन्तु चाहते हैं कि वह पर्याप्त श्रम किये बिना ही मिल जाये। हम किसी चीजके बारेमें बातें तो बहुत करते हैं, हम प्रस्ताव भी पास करते हैं, किन्तु उनपर अमल करनेका समय आते ही हम उससे कतरा जाते हैं। इसलिए वे जो राष्ट्रके लिए किये जानेवाले कामसे कतराते हैं, उन्हें याद रहे कि भारतका भाग्य बनाने में, भारतके लिए स्वराज्य प्राप्त करने में उनका कोई हाथ नहीं रहेगा। इसलिए मेरा अनुरोध है कि इस सूतकी शर्तवाले मताधिकारको आप कायम रखेंगे। आप चाहें तो सूतकी मात्रा कुछ घटा सकते हैं। लेकिन यदि मात्रा घटाई जाये तो प्रत्येक स्त्री-पुरुषके लिए, प्रत्येक लड़की और लड़केके लिए यह अनिवार्य बना दें कि जो भी कांग्रेस-जैसे जीवन्त संगठनके जरिये भारतकी सेवा करना चाहता है, वह आधा घंटा सूत काते और खद्दर पहने। ऐसा केवल समारोहोंके अवसरोंपर नहीं, कांग्रेसके कामके लिए नहीं, बल्कि सभी कार्योंके लिए अनिवार्य बना दें। अपने घरों में भी आप खद्दरके सिवा और कुछ न पहनें। ऐसे वस्त्र पहननेकी अपेक्षा जिसका सूत घरमें आपकी बहनोंने न काता हो और जिसे आपके भाइयोंने न बुना हो, बल्कि जो कारखाने में बुना गया हो, आपके लिए बिलकुल नंगा रहना ही ज्यादा अच्छा होगा। यही चरखेका सन्देश है। यही एक सरल, छोटी-सी माँग है। यह माँग मैं ऐसे प्रत्येक स्त्री और पुरुषसे करता हूँ जो भारतसे प्यार करता है और जो भारतको स्वाधीनता चाहता है।

आपको मुझसे यह सुनकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यदि आप माण्डलेकी जेलकी दीवारोंके अन्दर बन्द कैदियोंको छुड़ाना चाहते हैं, यदि आप सुभाषचन्द्र बोस तथा अन्य लोगोंकी रिहाई चाहते है तो आप चरखा कातें। बिना कर्मके यह असम्भव