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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रश्न पूछना चाहते हैं तो केवल प्रश्न ही लिख कर भेज दें—दलीलें देते हुए मुझे अपनी बातका कायल करनेकी कोशिश न करें। क्रान्तिकारी गतिविधिके सम्बन्धमें मैं सभी कुछ जाननेकी डींग नहीं हाँकता; परन्तु चूंकि उसके सम्बन्धमें मुझे बहुत-कुछ विचार, अवलोकन और लेखन करना पड़ा है, अतएव पत्र लेखकके पास मुझे बताने के योग्य नई बातें बहुत नहीं हो सकतीं। इसलिए जहाँ मैं उनकी बातपर खुले दिलसे विचार करनेका वचन देता हूँ वहाँ मेरा उनसे यह भी अनुरोध होगा कि कृपया राष्ट्रके एक कार्यव्यस्त सेवक तथा क्रान्तिकारियोंके एक सच्चे हितैषीको उन सब बातों को पढ़ने के परिश्रमसे बचाइए, जिनके पढ़ने की जरूरत उसे है ही नहीं। मैं क्रान्तिकारियोंकी बातोंसे वाकिफ रहनेके सम्बन्धमें उत्सुक जरूर हूँ और उसके लिए यह साप्ताहिक ही मेरा साधन बन सकता है। उनके लिए मेरे हृदयमें सद्भाव और स्नेह है, क्योंकि एक चीज उनमें और मुझमें समान रूपसे मौजूद है और वह है कष्ट सहनकी क्षमता। लेकिन चूंकि मैं विनम्रभावसे उन्हें गलतीपर तथा गुमराह मानता हूँ, मेरी अभिलाषा उन्हें उनकी गलतीसे विरत करने या खुद अपनी भूलको दुरुस्त करने की है।

मेरे क्रान्तिकारी मित्रका पहला प्रश्न है :

"क्रान्तिकारियोंने देशको प्रगति में बाधा पैदा कर दी है।" आपने खुद ही बंग-भंगके सिलसिले में जो लिखा था अब क्या आपका वह खयाल नहीं रहा? आपने लिखा था, "विभाजन होनेके बाद लोगोंने देखा कि प्रार्थनापत्र के पीछे बल चाहिए, लोगों में कष्ट उठानेकी शक्ति चाहिए। यह नई भावना ही विभाजनका मुख्य परिणाम मानी जायेगी।....जो बातें लोग डरते-डरते या लुके-छिपे करते थे, वे खुल्लम-खुल्ला कही और लिखी जाने लगीं।...पहले अंग्रेजों को देखते ही छोटे-बड़े सब भाग जाते थे। अब उनका डर चला गया। लोगोंने मारे-पीटे जाने की भी परवाह नहीं की। जेल जानमें उन्होंने बुराई नहीं मानी और इस समय 'भारतके पुत्ररत्न' निर्वासित होकर [विदेशों में], विराजमान हैं।[१] बंग-भंगके बाद वाला आन्दोलन क्रान्तिकारी आन्दोलन ही था। अधिक सही तो यह कहना होगा कि उसे जनताके असन्तोषका मूर्तिमन्त रूप माना जाये—और वे 'भारतके पुत्ररत्न' जिनका आपने उल्लेख किया है अधिकांशमें क्रांतिकारी या अर्ध क्रान्तिकारी थे। तब यो कथित अज्ञानी और गुमराह लोग देशकी भीरता, यदि नष्ट नहीं तो कम कैसे कर पाये? क्या महज इसलिए कि क्रान्तिकारी लोग आपके विचित्र अहिंसा-सिद्धान्तको नहीं समझ पाते, आप उन्हें अज्ञानी कहेंगे?

'हिन्द स्वराज्य[२] में व्यक्त किये गये मेरे विचारोंमें जिन्हें लेखकने उद्धृत किया है तथा मेरे आजके विचारोंमें कोई अन्तर नहीं है। जिन लोगोंने बंग-भंगके विरोध में

  1. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ १२।
  2. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ६-६९।