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फिर वही

ढकेलनेका यह एक अचूक उपाय है। इसलिए जिस व्यक्तिको पशु समस्याका यथार्थ ज्ञान है, यदि उसके पास गायके प्रति दयाभाव है तो वह अपने में सभी वर्तमान और भावी गो-रक्षा समितियोंका प्रतिनिधित्व करता है। इस अखिल भारतीय मण्डलकी स्थापना इसी उद्देश्यको सामने रखकर ऐसे व्यक्तियोंको खोज निकालने के लिए की गई है जो पवित्र आचरणवाले हों, निर्मल हृदय हों, गोप्रेमी हों, शिक्षित हों और जो अपना सारा समय अनुसन्धान तथा प्रबन्धके कार्योंमें लगा सकें। इसलिए मैं ऐसा मन्त्री चाहता हूँ जिसकी योग्यताका उल्लेख मैंने अपने उद्घाटन भाषण में किया है, जो इन्हीं पृष्ठों में अन्यत्र प्रकाशित है। कोषाध्यक्षकी अभी नियुक्ति करनी है। इस बीच प्रारम्भिक काम चलाने के लिए अस्थायी समिति, अस्थायी कोषाध्यक्ष तथा अस्थायी मन्त्रीकी नियुक्ति कर ली गई है। यह समिति किसी भी रूप में सम्पूर्ण भारतका प्रतिनिधित्व नहीं करती क्योंकि समितिको नियुक्ति उन्हीं लोगोंमें से करना जरूरी था जो उपस्थित थे। इस अस्थायी समिति के सदस्योंने मण्डलकी दूसरी बैठक होनेसे पहले अर्थात् अगले तीन मासके अन्ततक बारह सौ से अधिक सदस्य बनानेका काम अपने जिम्मे लिया है। यदि इस मण्डलको प्रतिनिधि संस्था बनाना है तो इसमें सभी प्रान्तोंके सदस्य होने चाहिए। अस्थायी मन्त्री बम्बई-निवासी श्रीयुत नगीनदास अमूलखराय हैं। और अस्थायी कोषाध्यक्ष झवेरी बाजार, बम्बईके श्रीयुत रेवाशंकर जगजीवन झवेरी[१] हैं। मुझे आशा है कि जो लोग गो-रक्षा में दिलचस्पी रखते हैं वे अपना चन्दा मन्त्री या कोषाध्यक्षके पास भेज देंगे। चन्दा ५ रुपया प्रतिवर्ष है जो पहले ही ले लिया जाता है, या रुपयोंके स्थानपर दो हजार गज हाथकता सूत प्रतिमास भेजा जा सकता है।

[अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ७-५-१९२५
 

१९. फिर वही

उन क्रान्तिकारी महाशयने फिरसे पत्र लिखा है, परन्तु मैं उनसे यह कहे बिना नहीं रह सकता कि इस पत्रको लिखने में उन्होंने इतने धैर्य से काम नहीं लिया है जितना कि पिछले पत्रमें[२] लिया था। इसमें उन्होंने बहुत-सी असम्बद्ध बातें लिख मारी हैं और अपनी दलीलों में लापरवाहीसे काम लिया है। जहाँतक मैं देख पाया हूँ उनकी दलीलोंका भण्डार खाली हो चुका है और उनके पास कहने के लिए कोई नई बात नहीं रह गई है। पर यदि वे फिर भी पत्र लिखना चाहें तो उसे कृपापूर्वक अधिक सावधानी के साथ लिखना और विचारोंको संक्षिप्त रूप देना बेहतर होगा। अबके उनका यह काम मैंने किया है। पर वे तो प्रकाश पानेके उत्सुक हैं; इसलिए उन्हें चाहिए कि वे मेरे लेखोंको ध्यानपूर्वक पढ़ें, शान्त चित्तसे उनपर विचार करें और तब जो लिखना हो साफ ढंगसे और संक्षेपमें लिख भेजें। यदि वे सिर्फ

  1. डा॰ प्राणजीवन मेहताके भाई।
  2. देखिए खण्ड २६, पृष्ठ १३४-३६, ४७८-८४।