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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
कुछ वाक्य उद्धृत करता हूँ। आशा है कि आप उनसे सब बातें बखूबी समझ जायेंगे।
सभी महान् आचार्योंने कहा है 'न पापे प्रति पापः स्यात्,' अर्थात् उन्होंने अप्रतिकारको सर्वोच्च नैतिक आदर्श माना है। किन्तु हम सब जानते हैं कि यदि संसारको वर्तमान अवस्थामें लोग इस सिद्धान्तका पालन करने लगे तो समाज-व्यवस्था खण्ड-खण्ड हो जायेगी, समाजका विनाश हो जायेगा, हिंस्र और दुरात्मा लोग हमारे जन-धन और प्राणतक का हरण कर लेंगे। एक ही दिवसके ऐसे निष्क्रिय प्रतिरोधके परिणामस्वरूप देश तहस-नहस हो जायेगा। मुझे मालूम है कि असमंजस की इस अवस्थामें आप क्या कहेंगे। आप उसका भिन्न अर्थ लगायेंगे। परन्तु आप देखेंगे कि उन्होंने इस प्रकारका अर्थ लगानेका अवसर ही नहीं दिया है, क्योंकि वे उसी स्थलपर कहते हैं : "आपमें से कुछ लोगोंने तो भगवद्गीता को पढ़ा होगा और आपमें से पश्चिमके बहुत से लोगोंको पहले अध्यायमें यह देखकर ताज्जुब हुआ होगा कि श्रीकृष्णने अर्जुनको, जब वह अपने प्रतिपक्षियों में अपने गुरुजनों और सम्बन्धियोंको देखता है और अप्रतिकारको प्रेमका सर्वोच्च आदर्श बताता हुआ युद्ध करनेसे इनकार कर देता है, पाखण्डी और भीरु कहा है। इससे हम एक बड़ी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं—किसी भी बातके दोनों छोर एकसे ही हुआ करते हैं; आत्यन्तिक भाव और आत्यन्तिक अभाव दोनोंका स्वरूप सदा ही एक समान होता है; जब प्रकाशकी लहरोंका कम्पन बहुत कम होता है तब हम कुछ नहीं देख सकते और जब वे बहुत तेज होती हैं तब भी हम नहीं देख पाते। यही बात ध्वनिपर घटित है। जब वह बहुत धीमी होती है तब भी हम और जब बहुत ऊँची होती है तब भी नहीं सुन सकते। और अप्रतिकारपर घटित होती है।...सबसे पहले हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारे पास प्रतिकारकी शक्ति है भी या नहीं। पर यदि वह हमारे पास हो और फिर हम उसका प्रयोग न करें तो हमारा वह कृत्य महान् प्रेमका कृत्य होगा; परन्तु यदि हम मुकाबिला नहीं कर सकते और फिर भी हम यह दिखायें या अपने मनमें यह मान लें कि हम तो उच्च प्रेमभावसे प्रेरित होते हैं तो हम नीतिकी दृष्टिसे जो बात ठीक बैठती है। उसके ठीक विपरीत आचरण करेंगे। अर्जुन अपने सामने सबल सेनाको देखकर भयभीत हो गया, उसका 'प्रेम' देश और राजाके प्रति अपने कर्त्तव्यको भुला देनेका कारण बन बैठा। इसीलिए श्रीकृष्णने उसे दम्भी—'अशोच्या नन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।' इसलिए 'उठ और युद्ध कर।'" अब में कुछ प्रश्न करनेके अलावा और कुछ नहीं कहना चाहता। क्या आपका खयाल है कि आपके ये पक्के शान्तिप्रेमी कहलानेवाले शिष्य इस विदेशी नौकरशाहीका उसे नहीं सुन सकते यही बात प्रतिकार