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२०. टिप्पणियाँ
मुझे देवता न बनाइये

डूंगरगढ़ स्टेशनपर एक मुस्लिम मित्रने कहा कि मुझे देवता-पदपर बैठानेकी कार्रवाई, खासकर गोंड लोगोंमें, जारी है। ऐसी बुतपरस्तीपर मैं अपनी घोर व्यथा और जबरदस्त नापसन्दगी कई बार जाहिर कर चुका हूँ। मैं तो एक मामूली मर्त्य प्राणी हूँ और मानवीय शरीरमें पाई जानेवाली तमाम कमजोरियाँ मुझमें हैं। गोंड लोग मुझे देवता-पदपर प्रतिष्ठित करनेकी मूर्खता करें, इसकी अपेक्षा उन लोगोंको मेरे सीधे-सादे पैगामका मतलब समझाया जाये तो कहीं ज्यादा अच्छा होगा। उनके ऐसा करनेसे न तो उन्हें ही लाभ होगा, और न मुझे ही; उलटा उनके सदृश भोले-भाले लोगोंका अंधविश्वासी स्वभाव बढ़ेगा। मैं हर कांग्रेसीसे इस बात में सहायताकी याचना करता हूँ कि वे गोंडोंको इस भूलसे सावधान कर दें और उन्हें धोखेसे बचायें।

अस्पृश्य

कलकत्ता जाते हुए रास्ते में एक स्टेशनपर कितने ही अस्पृश्योंको जमा हुए देखकर मुझे बड़ा हर्ष हुआ। उन्होंने मुझे अपने हाथका कता-बुना खादीका थान भेंट किया। कार्यकर्त्ताओंने मुझे बताया कि ठोस और मजबूत काम तो वास्तवमें इन अस्पृश्योंके द्वारा ही हो रहा है। वे शराब पीना और मुरदार माँस खाना छोड़ रहे हैं और खादीको अपना रहे हैं । यदि मुझसे कोई यह नहीं कहता कि उस झार-सोगड़ा स्टेशनपर मिलनेवाले लोग अस्पृश्य हैं तो मैं उन्हें उस जनसमूहमें पहचान ही न पाता।

खादी

मैं यह सुनकर दंग रह गया कि रायगढ़ में एक भी चरखा नहीं चल रहा है। जो लोग मुझसे मिलने आये थे उन्होंने मुझसे कहा कि हममें से बहुतेरे तो देहातों से गरीब भाइयों द्वारा लाया गया कपड़ा पहने हुए हैं। उन्होंने बताया कि गाँवके लोगोंमें तो खादी बहुत प्रिय हो गई है और यदि उनके अन्दर प्रचार और ज्यादा दिलचस्पीसे किया जाये तो वह आसानीसे घर-घर पहुँच सकती है। मध्यप्रान्त और छत्तीसगढ़के लोगोंमें चरखे और करघोंपर काम करनेकी विशेष योग्यता है, बस जरूरत है सिर्फ संगठनकी

बालकी खाल निकालना

उस दिन एक प्रसिद्ध कांग्रेसी मुझसे मिले थे। मैं उनको बड़े आदरकी दृष्टिसे देखता हूँ और वे तो अनुशासनके बड़े कायल भी हैं। उनके बदनपर सब कपड़े खादी नहीं थे। मैंने तो समझा था कि उनके तनपर सब कपड़े खादीके ही होंगे। पर जो लोग उन्हींके नगरमें रहते थे वे उनको ज्यादा जानते-बूझते थे। वे मुझसे