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बंगालके अनुभव

जरूरी है और मैं जबतक बंगालमें हूँ तबतक व्यवस्थापकोंकी किसी भूल-चूकसे मेरे स्वास्थ्यको कोई खतरा हर्गिज पैदा नहीं होना चाहिए।

लेकिन मेरी राय तो यह है कि यदि मैं इस तरह गादी-गदैलोंमें लिपटा रहा तो मेरी इस यात्रासे कुछ ज्यादा लाभ नहीं हो सकता। मुझे तो जहाँतक हो सके अपने लाखों गरीब भाई-बहनोंकी तरह रहना और घूमना-फिरना चाहिए या फिर लोकहितकी दृष्टिसे यात्रा करना बिलकुल बन्द कर देना चाहिए। मुझे इस बातका पूरा यकीन है कि जैसे वाइसराय शिमलाके अपने अगम्य भवनमें रहते हुए लाखों भारतवासियोंके हृदयपर अधिकार नहीं कर सकते, वैसे ही मैं भी पहले दरजेका दुगुना ही नहीं, पंचगुना किराया खर्च करके अपना सन्देश लाखों लोगोंको प्रभावकारी रूपमें नहीं पहुँचा सकता। ज्यादासे-ज्यादा दूसरे दरजेकी एक सीटका किराया खर्च करनेकी बात तो सहन की जा सकती है। आरामदेह पहले दरजे में यात्रा करते देखकर गरीब लोग मुझे अपने जैसा नहीं मान सकते। इसलिए वे जब-जब डिब्बेके नजदीक आते थे, सहमें-सहमें झाँकते थे। मुझे भी उन्हें देखकर बेचैनी मालूम होती थी। मेरे शरीरको चाहे ज्यादा आराम मिला हो, परन्तु मेरी आत्मा तो विकल थी। मुझे यकीन हो चुका है कि जबतक हम गरीबोंके साथ कष्ट सहन करना न सीखेंगे तबतक हम उनका स्नेह नहीं प्राप्त कर सकते। मैंने हमेशा यह पाया है कि मैं जब भी तीसरे दरजे में सफर के लायक नहीं रहा या मैंने यह माना कि मैं तीसरे दरजे में सफर करने लायक नहीं हूँ तभी गरीबोंकी सेवा करनेकी मेरी आधी उपयोगिता चली गई। यदि मैंने तीसरे दरजे में यात्रा न की होती तो मैं कभी उनको न समझ पाता और न अपनेको गरीबों-जैसा महसूस कर पाता। मैं अपने जीवनमें अपने तीसरे दरजेके सफरके अनुभवोंको निहायत कीमती मानता हूँ। अतः मुझे लगता है कि दूसरा दरजा मेरी हद है और मुझे उससे आगे नहीं जाना चाहिए। यदि मित्रगण चाहते हों कि मैं भ्रमण द्वारा देशकी सेवा करूँ तो वे मुझे इस हदसे आगे न ले जायें और न उसका लालच दें। जब मैं दूसरे दरजे में भी यात्रा करने लायक न रह जाऊँ तो मुझे यात्राके द्वारा सेवा करना बन्द कर देना चाहिए। परमेश्वर स्पष्ट चेतावनी नहीं देता। वह संकेत मात्र देता है और जो लोग समझना चाहें वे उसे समझ सकते हैं। स्वागत समितिकी व्यवस्थामें तो मैं बहुत फेरफार नहीं कर रहा हूँ; परन्तु अबसे मैं अपने मित्रोंको नोटिस दे रहा हूँ कि वे अपने प्रेमकी अतिशयतासे मेरा दम न घोंटें। वे उतनी ही सावधानी बरतें जो औचित्यकी सीमाको पार न कर जाये। किन्तु उन्हें कुछ बातें तो ईश्वरपर भी छोड़ देनी चाहिए। यदि ईश्वरकी इच्छा होगी कि मैं यात्रा न करूँ तो हमारी कोई भी सावधानी काम नहीं आ सकती और यदि वह चाहेगा कि मैं भ्रमण करके कुछ सेवा करूँ तो सावधानी न बरतने पर भी मैं बीमार नहीं पड़ेंगा। मैं उन्हें यह भी यकीन दिलाना चाहता हूँ कि मैं खुद ही अपने शरीरकी बहुत कुछ चिन्ता रखता हूँ और आवश्यक शारीरिक जरूरतोंकी उपेक्षा नहीं करता। मैं यह बात भी कृतज्ञतापूर्वक कह देना चाहता हूँ कि किसी भी प्रान्तने—यहाँतक कि गुजरातने भी मेरे प्रति बंगालसे अधिक प्रेम प्रदर्शित नहीं किया है। यह मेरे लिए बड़े सौभाग्यकी बात है कि किसी भी प्रान्तमें मुझे परायेपनका अनुभव नहीं हुआ—बंगालमें तो बिलकुल ही नहीं।