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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

उचित दण्ड

यद्यपि स्वागत समितिने मेरी सुख-सुविधाका बहुत अधिक ध्यान रखा था, फिर भी दैवेच्छा कुछ और ही थी, क्योंकि फरीदपुर जाते हुए रास्तेमें लगभग हर स्टेशनपर दर्शनार्थियों की भीड़ने रातभर नींदमें विघ्न डाला। मेरे साथियोंने इन अन्धभक्तोंको शान्त करने के बहुत प्रयत्न किये; किन्तु वे सब व्यर्थ हुए। मेरे साथियोंने बहुत कहा कि मैं थकावटसे चूर-चूर हूँ, अतः मुझे आराम देने की जरूरत है, किन्तु उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी। बत्ती, बत्ती—की जय' की आवाजोंसे आकाश गूंज उठता और सोते हुए मुसाफिरोंको बहुत कष्ट होता। भीड़को उनका भी कोई खयाल नहीं था। मैं अटल रहा। यद्यपि इससे मेरे 'महात्मापन' के चले जानेका भय था किन्तु मैं अपने बिस्तरसे नहीं उठा। मैं ऐसे असंयत और अर्थहीन प्रेमकी माँग पूरी करना अपराध मानता था। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हमें अति कठोर अनुशासनकी आवश्यकता है। हमारा व्यक्तियों या देशके प्रति प्रेम सविवेक होना चाहिए। जबतक इसको संयत नहीं किया जाता तबतक यह व्यर्थ ही नष्ट होता रहेगा और अनजानमें प्रस्फुटित होकर कभी-कभी हानि भी पहुँचायेगा। हर गाँवमें मौन, विनयशील और समझदार कार्यकर्त्ता होने चाहिए जो लोगोंका नेतृत्व करें और उनके प्रेमको देशके लिए सच्ची शक्तिके रूपमें बदलें। 'जिसका कर्म शिव है, वही शिव है।' सच्चा प्रेम आधी रातके समय जयजय कार करनेमें नहीं है; बल्कि मौन रहकर राष्ट्रीय कार्य करनेमें है। यात्राके मध्य आनेवाले सब स्टेशनोंके लोग मुझे या अपनी श्रद्धाभक्तिके भाजन अन्य व्यक्तियोंको नहीं देख सकते। किन्तु वे सभी इन अवसरोंका उपयोग अपनी काहिलीको छोड़ने और अधिक राष्ट्रीय कार्य करनेमें कर सकते हैं।

पागल बंगाली

बंगाली पागल हैं। देशबन्धु चित्तरंजन दासने अपना महल जैसा घर राष्ट्रीय कार्यके निमित्त न्यासियोंको दे दिया। मैं जानता हूँ कि इस इमारतपर कुछ कर्जा है। किन्तु यदि देशबन्धु चाहते तो अपनी शानदार वकालत फिर शुरू करके इसे एक सालमें ही चुका सकते थे। मैं जब इस इमारतमें घुसा तो मेरा मन उदास हो गया और मेरी आँखोंमें बरबस आँसू आ गये। इस बातपर विचार करूँ तो मैं देख सकता हूँ कि इस भवनका त्याग करके वे एक भारसे मुक्त ही हुए है। किन्तु एक संसारीके रूपमें मैं यह भी जानता हूँ कि ऐसे लाखों लोग हैं जो ऐसा भार प्रसन्नता-पूर्वक उठा लेंगे और ऐसी भारी-भरकम इमारतमें रहते हुए सुख अनुभव करेंगे। इसलिए जब मैंने घरमें प्रवेश किया और मुझे उसी कमरेमें ठहराया गया जिसमें कल तक भारतका महान देशभक्त रहता था तब मैं अपने आपको सँभाल न सका। किन्तु उनका पागलपन यहीं समाप्त नहीं हो सकता। वे बीमार हैं और कमजोर हैं। उन्हें बैठने में तकलीफ होती है और वे अपनी जगहसे तकलीफके साथ ही उठ सकते हैं। उनकी आवाज में पहली जैसी कड़क नहीं रही है। किन्तु वे फिर भी अध्यक्षता अवश्य करेंगे—यश कमानेके लिए नहीं, बल्कि सेवार्थं। वे विषय समितिको बैठकमें देरतक अवश्य बैठेंगे। वे उन लोगोंसे बहस भी करेंगे, जो यह समझना नहीं चाहते या