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पत्र : साम्बमूर्तिको


मैं किसी लड़केको स्वेच्छासे किसी सरकारी स्कूल में भेजनेमें शरीक नहीं होऊँगा। राष्ट्रीय स्कूलोंमें भले ही कमियाँ हों, किन्तु उनको प्रोत्साहन देना ही चाहिए। लेकिन यहाँ फिर मैं यह कहूँगा कि किसी यांत्रिक उपायसे किसी लड़केको सरकारी स्कूलमें जानेसे रोकनेकी कोई जरूरत नहीं है। जबतक वह सरकारी स्कूलोंमें जानेमें अप्रतिष्ठाका अनुभव स्वयं न करे तबतक उसके वहाँ न जानेसे कोई लाभ नहीं है।

यदि अर्व शिक्षित भारतीयोंसे आपका मतलब उन भारतीयोंसे है जो सही-सही अंग्रेजी नहीं बोल सकते तो मैं ऐसे बहुत-से भारतीयोंको जानता हूँ, जो यद्यपि अंग्रेजी सही-सही नहीं बोल सकते, फिर भी जिनके आदर्श बहुत ऊँचे हैं। दूसरी ओर ऐसे हजारों स्नातक हैं, जिनका सबसे बड़ा आदर्श अधिकसे-अधिक पैसा कमाना है और जो सार्वजनिक जीवनसे बिलकुल अलग ही रहते हैं।

पता नहीं, इतने में आपके सारे प्रश्नोंके उत्तर आ जाते हैं या नहीं।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीयुत जितेन्द्रनाथ कुशारी
सत्याश्रम
डाकघर बहरोक
ढाका

अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ७१८८) की फोटो-नकलसे।

 

३६. पत्र : साम्बमूर्तिको

१४८, रसा रोड
१५ अगस्त, १९२५

प्रिय भाई,

मैं बंगालमें अपेक्षासे अधिक समयतक रुक गया, इसलिए मेरी सारी योजना उलट-पलट हो गई। अक्तबरके अन्ततक तो मैं बिहारमें ही रहँगा। इसके बाद इस वर्षकी समाप्तिसे पहले-पहले मैं जिन प्रान्तोंका दौरा कर लेना चाहता था, उनमें से निम्नलिखित प्रान्त बच जायेंगे : आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश (मराठी), मध्यप्रदेश (हिन्दी) और महाराष्ट्र।

इन सभी प्रान्तोंका दौरा दो महीनेसे कम समयमें कर पाना असम्भव है। इसलिए अगर यह बिलकुल जरूरी न हो तो मैं आपसे कहूँगा कि आप अपने प्रान्तके दौरेके कार्यक्रमसे मुझे मुक्त कर दें। लेकिन अगर आप यह समझें कि आपके प्रान्तका दौरा करना नितान्त आवश्यक है तो यह सूचित कीजिए कि आप मुझे वहाँ कितने दिनोंके लिए चाहते है।