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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके अध्ययन में अनेक कार्यकर्ताओंको अपना जीवन खपा देना पड़ेगा। मैं चाहता हूँ कि संघके सदस्य सुजाये गये तरीके से इस कार्य में लग जायें। मैं इस बातका विशेषज्ञ नहीं हैं, इसलिए खुद में इसे हाथमें नहीं ले सकता। किन्तु मेरे मनमें किसी प्रकारका दुराग्रह नहीं है और मैं उन सभी व्यावहारिक सुझावोंपर ध्यान दूँगा।

जहाँतक हिन्दू-मुस्लिम एकताको समस्याके हलका सम्बन्ध है, इस समय मैंने घटनेही टेक दिये हैं। मैंने इसे प्रकृतिपर छोड़ दिया है। मेरा विश्वास है, अगर लोग आमने-सामने दो-तीन बार जमकर लड़ लें तो इन लड़ाइयोंको निरर्थकता उनकी समसमें आ जायेगी। आज लड़ाइयाँ जहाँ भी हो रही हैं, वहाँ उनके पीछे कुछ स्थानीय झगड़ालू लोगोंका ही हाथ होता है। मेरा इन लोगोंपर कोई प्रभाव नहीं है। मेरा विश्वास है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता स्वराज्यकी तरह जल्दी ही आ रही है और भारत आज एक हद दर्जे के नाजुक वक्तसे गुजर रहा है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २९–८–१९२५
 

६४. टिप्पणियाँ
सनातन हिन्दू

एक सज्जन है, जो मेरी तनिक-सी गफलतपर भी जवाब-तलब कर बैठते हैं। स्पष्ट है कि वे 'यंग इंडिया' के नियमित किन्तु आँखें बन्द करके तारीफ करनेवाले पाठक नहीं है। वे बड़े बेलाग, किन्तु सुहृद आलोचक है; वे मेरे लेखोंमें जो कुछ अच्छा होता है उसके साथ ही दोष भी देखते हैं। उनका एक पत्र मेरी फाइलमें बहुत दिनोंसे पड़ा हुआ है। उसमें उन्होंने मेरे लेखोंमें एक सम्भाव्य असंगतिकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया है। उस पत्रके एक अंशमें 'सनातन हिन्दू' की व्याख्या की गई है। पत्रका वह अंश इस प्रकार है :[१]

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने लिखा था कि आपने अपनेको अक्सर एक सनातनी हिन्दू बताया है और सनातनी हिन्दूका अर्थ ऐसा हिन्दू लगाया है, जिसका वेदों, स्मृतियों आदिमें विश्वास हो। आपने धर्म-ग्रन्थोंमें प्रतिपादित जन्मपर आधारित जाति-प्रथापर भी जोर दिया है। अलबत्ता, आपने जाति-उपजातियाँ न मानकर चार वर्ण ही माने हैं, जिनमें चौथा वर्ण शूद्र है। जिन धर्म-ग्रन्थों में विश्वास रखना आप हर सनातनी हिन्दूके लिए, आवश्यक मानते हैं, उन्हीं धर्म-ग्रन्थोंमें शूद्रों के लिए वेदोंका अध्ययन और गायत्रीका जाप निषिद्ध कर दिया गया है। जिस व्यक्तिको, (अर्थात् शूद्रको) हिन्दू-धर्मके ग्रंथोंका अध्ययन करनेकी मनाही हो, उसे हिन्दू कैसे कहा जा सकता है? इस तरह शूद्र वंशमें उत्पन्न व्यक्ति या तो आपकी परिभाषाके अनुसार हिन्दू नहीं है, या अगर हिन्दू है तो सनातन हिन्दूका मतलब वह नहीं होना चाहिए जो आपने लगाया है। पत्र-लेखकने "हिन्दू-धर्म" पर लिखे गांधीजीके लेख (देखिए खण्ड २१, पृष्ठ २५६-२६१) और बेलगाँवकी गोरक्षा परिषद् में दिये उनके भाषण (देखिए खण्ड २५, पृष्ठ ५४९-५५)का भी हवाला दिया था। उसने गांधीजीसे यह भी जानना चाहा था कि क्या वे नियमित रूपसे गायत्रीका जाप करते रहे हैं।