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भारत और दक्षिण अफ्रीका



निषिद्ध भारतीय अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति और निहित अधिकार खो बैठेंगे और उन्हें वहाँसे निकाल बाहर किया जायेगा।...हमें भरोसा है कि आप भारतमें प्रबल लोकमत उत्पन्न करके भारत सरकारको जाग्रत करेंगे, ताकि वह हमारी रक्षाके लिए संकल्पपूर्वक कदम उठाये। भारतीय जातिके अपमानका भारतको समुचित्त ढंगसे विरोध करना चाहिए। यह अपमान अकारण है और हम उसपर अत्यन्त तीव्र और प्रबल रूपमें रोष प्रकट करते हैं। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप भारत-सरकारपर जोर डालें और उससे तत्काल अपना रुख सार्वजनिक रूपसे व्यक्त करने को कहें, क्योंकि सब सम्बन्धित लोग उसकी निष्क्रियताका गलत अर्थ निकाल सकते हैं।

यद्यपि यह तार अखबारोंमें प्रकाशित किया जा चुका है, फिर भी इसे यहाँ पुनः प्रकाशित करना उपयोगी ही होगा। मुझे उस गजटकी भी एक प्रति मिली है, जिसमें इस विधेयकका पूरा पाठ दिया गया है। यह विधेयक बहुत बड़ा है। इसमें तीन अध्याय, २७ खण्ड और एक अनुसूची भी है। वह ठसकर छपे हुए फुलस्केप आकारके ९ पृष्ठोंमें आया है। मैं इस विधेयकको नहीं छाप रहा हूँ क्योंकि इस विधेयकका कई पिछले कानूनोंसे भी सम्बन्ध है, जिन्हें इसमें या तो संशोधित किया गया है या रद, और इन कानूनोंकी जानकारीके बिना यह विधेयक पाठकोंकी समझमें नहीं आ सकता। इतना कह देना पर्याप्त है कि इस विधेयकमें जिन प्रतिबन्धोंको लागू करनेका प्रयत्न किया गया है, उनका सार तारमें पूर्ण रूपसे आ जाता है। यह विधेयक वहाँ रहनेवाले भारतीयोंकी स्थिति इतनी खराब बना देता है कि कुछ ही वर्षोंमें दक्षिण आफ्रिकामें एक भी भारतीय प्रवासी नहीं बच रहेगा और संघ सरकारको उन्हें उनके निष्कासनके लिए कोई मुआवजा भी नहीं देना पड़ेगा। यदि विधेयककी धाराओंको पूरी कठोरताके साथ लागू किया गया तो प्रशासनको ऐसे अधिकार मिल जायेंगे जिनके बलपर वह सब-कुछ करनेके बावजूद प्रत्येक भारतीयको उस देशके लिए बिलकुल अयोग्य बना छोड़ेगा, जिसे उसने अपना घर बना लिया है, यहाँतक कि जहाँ उसका जन्म भी हुआ है। कारण, इस विधेयकमें जो भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें ही जन्मे है, और जो यहाँके अधिवासी हो गये हैं उनके बीच कोई अन्तर नहीं किया गया है। विधेयकमें जिन संरक्षणोंकी व्यवस्था है वह थोथी है और उसे सर्वथा निरर्थक बनाया जा सकता है। यह कोई तसल्लीकी बात नहीं है कि विधेयक अभी कानून नहीं बना है। इस विधेयकसे प्रकट होता है कि संघ सरकारने भारतीयोंको भूखों मारकर दक्षिण आफ्रिकासे खदेड़ देनेका निश्चय कर लिया है। श्री मलानने[१] यह बात बिलकुल स्पष्ट कर दी है। अब तो किसी-न-किसी दिन सभी भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकासे निकलना ही है। पाठकोंको याद होगा, यदि नहीं तो वे जान लें कि जो चीनी मजदर जोहानिसबर्गकी सोनेकी खानोंके कामके लिए लाये गये थे, सरकारने जैसे ही निश्चय किया, तुरन्त वापस भेज दिये गये। चीनियोंकी एक नहीं सुनी गई। यदि भारत सरकार अपना कर्तव्य पूरा नहीं करती तो यही दशा भारतीयोंकी भी।

  1. एफ॰ एस॰ मलान, केपटाउनके चुने गये संघीय संसद के सदस्य।