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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगी। श्री भायातने हमसे दर्दनाक अपील की है। जहाँतक लोकमतका सम्बन्ध है, वह पूरी तरहसे भारतीय प्रवासियोंके पक्षमें है। किन्तु दुर्भाग्यसे यह लोकमत प्रभावहीन है। लेकिन वह जैसा कुछ है, १९१४ में दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके तत्कालीन अधिकारोंकी सुरक्षाके लिए किये गये समझौतेकी पूरी उपेक्षा करके उस देशमें रहनेवाले हमारे देशभाइयोंको लूटने के आसन्न विनाशको रोकने के लिए उसे गति तो दी ही जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-९-१९२५
 

८१. देशबन्धु स्मारक

बंगालसे में बहुत भारी मनसे विदा ले रहा हूँ। इतने दिनसे यहाँ रहते हुए मुझे ऐसा लगने लगा था कि मैं बंगालका ही हूँ। अब श्रीमती बासन्ती देवीके यहाँ उनके दर्शनार्थ नित्य न जा सकूँगा और न उन बंगालियोंके हँसमुख चेहरोंको देख सकूँगा जो रोज चन्दा देने के लिए मेरे पास भिन्न-भिन्न स्थानोंसे आया करते थे। मुझे इन सबकी याद बहुत आयेगी। मैं जानता हूँ कि यदि हम १० लाख पूरा नहीं कर पाये है तो उसका कारण देशबन्धुकी स्मृतिके प्रति श्रद्धाकी कमी या बंगालियोंके हृदयोंमें इच्छाका अभाव नहीं, बल्कि हमारे संगठनकी त्रुटियाँ है और ये त्रुटियाँ किसी एक जगह नहीं, सब जगह है। यदि बंगालके गाँव-गाँवमें हम पहुँच पाते तो सारी रकम कभीकी पूरी हो जाती। फिर भी जितना इकट्ठा हो चुका है ७,७४,१६५ रु॰ १० आना ५। पाई—वह बंगालके लिए कोई नामोशीकी बात नहीं है। मैने एक मोटा तखमीना लगवाया है, जिससे मालूम होता है कि १,४०,००० रुपये से कुछ अधिक बंगालमें रहनेवाले मारवाड़ियोंने दिया; लगभग ६०,००० बंगालमें रहनेवाले गुजरातियोंने और शेष बंगाल-निवासियों तथा अन्य प्रान्तोंमें रहनेवाले बंगालियोंने दिया है। इस रकममें वे छोटी-मोटी रकमें भी शामिल हैं जो अन्य प्रान्तोंसे आई है। जिस उद्देश्यसे यह कोष एकत्र किया गया है उस उद्देश्यको पूरा करने की जिम्मेवारी अब कोषके कर्ता-धर्ता लोगोंकी है।

लेकिन अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक कोषके संग्रहका काम अभी शेष ही है। उगाहीके लिए अभी संगठित प्रयत्न शुरू नहीं किया गया है। पंडित जवाहरलाल नेहरूने २३ अगस्ततक उगाहे गये चन्देकी एक सूची प्रकाशित की है। कुल २,००२ रुपया ८ आना ६ पाई इकट्ठा हो चुका है। यह सूची पाठकोंको काफी रोचक लगेगी, इसलिए उसे नीचे दे रहा हूँ।[१]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-९-१९२५
  1. यहाँ नहीं दी जा रही है।