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पत्र : वल्लभभाई पटेलको

छोटी रकमोंको जोड़ें तो करोड़ों रुपया होता है जिन्हें सिर्फ चरखेके जरिये ही बचाया और गाँवोंमें पहुँचाया जा सकता है। मेरी समझमें नहीं आता कि लोग इतनी सीधीसी बात क्यों नहीं समझ पाते हैं। यदि आप यह मामूली-सा काम भी नहीं कर सकते तो फिर स्वराज्य या रामराज्य, जो भी कह लें, की स्थापना कैसे हो सकती है? मैं आशा करता हूँ कि जो पहले कताई नहीं करते थे अब करने लगेंगे। सभाके संयोजकोंकी ओर मुड़कर उन्होंने कहा कि जिन बच्चोंने आरम्भमें गीत गाया वे भी खद्दर नहीं पहने हुए थे। यह देखकर मुझे दुःख हुआ है। मैं आशा करता हूँ आगे ऐसी भूल नहीं होगी। में हिन्दुओं को बता सकता हूँ कि हिन्दूधर्ममें अस्पृश्यताका कोई स्थान नहीं है। यदि कोई व्यक्ति सोचे कि अन्य किसीको छूना पाप है, तो वह स्वयं पाप करता है।

जहाँतक हिन्दू-मुस्लिम एकताका सवाल है, मैं क्या कहूँ, कुछ समझ नहीं आता। मेरा दोनों जातियोंपर से सारा प्रभाव उठ गया है। पर में यह कैसे भूल सकता हूँ कि जबतक दोनों जातियाँ एक-दूसरेका साथ न देंगी तबतक स्वराज्य एक स्वप्न ही बना रहेगा।

भाषणके अन्त में उन्होंने देशबन्धु स्मारक कोषमें चन्दा देने की अपील की।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २७-९-१९२५
 

१३२. पत्र : वल्लभभाई पटेलको

शनिवार, २६ सितम्बर, १९२५

भाई वल्लभभाई,

मैं बम्बई २० तारीखको पहुँचूंगा। २१ को तुम भी कच्छ आ रहे हो न? अर्थात् २० तारीखको तो तुम भी बम्बई आ चुकोगे। मणिबहनके बारेमें देवधरका तार है। वह उसके पास भेज दिया है। वह मणिबहनको दिसम्बरमें खुशीसे लिवा ले जानेकी बात कहता है। डाह्याभाईको मिलमें तो नहीं रखना है और यदि उसे बिड़लाके यहाँ रखा तो अधिकांशतः उसे मिलका काम मिलनेकी ही सम्भावना है। इस बारेमें ज्यादा बातचीत जब मिलेंगे तब करेंगे। जमनालालके साथ मैं इसपर विचार कर रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

और लिखनेका मुझे समय नहीं है।
[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो—२ : सरदार वल्लभभाईने