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१४४. पत्र : फूलचन्द शाहको

आश्विन सुदी ११ [२८ सितम्बर, १९२५१][१]

भाईश्री फूलचन्द,‌[२]

तुम्हारे दोनों पत्र मिले हैं। अन्त्यजोंको नगरपालिकामें दाखिल होने का अधिकार न मिले तो वहाँके लोकमतको प्रशिक्षित करना चाहिए। ठाकोर साहबके[३] पास जाना; लेकिन सत्याग्रह न करना। अन्त्यज भी नगरपालिकामें जाकर लड़ें। धीरजकी इसमें गुंजाइश है। जातिभोजके बारेमें मैंने 'नवजीवन' में लिख भेजा है, उसे[४] देखना। हम धीरजसे, शान्तिसे और विवेकसे काम लेंगे तो महाजन ठंड़े पड़ जायेंगे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ २८८०) की फोटो-नकलसे।

 

१४५. पत्र : गोपबन्धु दासको

पटना
२९ सितम्बर, १९२५

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। अच्छा ही हुआ आप पटना नहीं आये। मुझे महावीरसिंह[५] का मामला समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई। वे और निरंजन बाबू दोनों आ गये थे। यह तय हो गया है कि महावीरसिंहको जिन कागजातकी जरूरत है, निरंजन बाबू उन्हें भिजवा देंगे। उनसे कर्जकी बात स्वीकार कराने में तो कोई कठिनाई नहीं होगी पर उसकी वसूलीमें काफी कठिनाई हो सकती है। जहाँतक कांग्रेसका सवाल है, सिंहभूम, मध्यप्रान्त, आन्ध्र और अन्यत्र क्षेत्राधिकारके विवादको तय करानेका काम मैने अपने ऊपर ले लिया है। मैं चाहता हूँ कि आप अपना मामला लिखकर तैयार कर लें और उसके साथ अपने पक्षके समर्थनमें साक्ष्य भी तैयार रखें। प्रत्येक मामले में संक्षिप्त रूपसे सभी तथ्य दे दिये जायें। तब मैं दूसरे पक्षोंसे उनका जवाब मागूँगा। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रोंमें टिके रहकर वहाँ चरखे द्वारा राहत देने के आपके निर्णयसे मैं बहुत

 
  1. ढाककी मुहरसे।
  2. फूलचन्द कस्तूरी चन्दशाह, सौराष्ट्रमें बढ़वानके कांग्रेसी कार्यकर्त्ता।
  3. तत्कालीन बढ़वान राज्यके शासनाध्यक्ष
  4. यहाँ गांधीजी सम्भवतः अपने लेख "जाति बहिष्कार", ११–१०–१९२५ के बारेमें कह रहे हैं।
  5. उत्कल प्रन्तिय कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष। सम्बलपुर प्रदेश कांग्रेस कमेटीने उनपर गबनका आरोप लगाया था।