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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और मुसलमान भाइयोंसे इस समस्याके बारेमें कुछ कहना चाहूँगा। लेकिन मैं अपने आपको एक समझदार व्यक्ति मानता हूँ और अपनी सीमाओंसे भी मैं भलीभाँति परिचित हूँ। मैं पूरी तरह समझ गया हूँ कि हिन्दुओं और मुसलमानोंपर मेरा जैसा प्रभाव १९२१ में था, वैसा प्रभाव अब नहीं रहा। आज तो हिन्दू या मुसलमान, दोनोंमें से किसीसे भी मैं अपनी बात नहीं मनवा पाता हूँ। मैं यह बात अच्छी तरह जानता हूँ कि जब दोनों अपने इस पागलपनसे छुटकारा पा लेंगे तभी कोई अच्छा परिणाम निकल सकेगा। एक शक्ति ऐसी है, चाहे उसे ईश्वर कहिए या खुदा, जिसके सामने हमारे सिर बराबर झुक जाते हैं। हमें चाहिए कि उस शक्तिसे डरकर चलें और उसीके डरसे परिचालित होकर अपना कर्तव्य निश्चित करें। ऐसी कोई बात नहीं है, जिसके आधारपर हम हिन्दुओं और मुसलमानोंका एक-दूसरेसे झगड़ना उचित माना जा सके। मुझे तो न कोई धर्म-सम्बन्धी शिकायत दिखाई देती है और न कोई और ऐसा कारण जिसको लेकर यह झगड़ा हो। इसका कारण सिर्फ हमारा पागलपन ही है। अगर हम इस अज्ञानसे छुटकारा पाना चाहते हैं और सचमुच मनुष्य बनना चाहते हैं तो हमें अहंकार छोड़ देना चाहिए और ईश्वरसे डरते हुए अपने हृदय निर्मल करने चाहिए और फिरसे मिलकर एक होने का प्रयत्न करना चाहिए।

"मेरे मन कुछ और है, विधनाके कुछ और।" हम क्या जाने कि हमारे दिलोंको इतना बुरा बनाकर ईश्वर क्या करना चाहता है? अपनी गति तो स्वयं वही जानता है, दूसरा कोई नहीं। जब कुछ मुसलमान मित्रोंने, जो सचमुच दिलसे इस झगड़ेको खत्म करना चाहते है, इस विषयमें मुझसे सलाह माँगी, तो मैंने उन्हें यही सलाह दी कि आप वैसा ही करें जैसा प्रथम चार खलीफाओंके समयमें कुछ मुसलमानोंने किया था। जब दो भाई आपसमें झगड़ पड़ते हैं, उनमें गलतफहमी हो जाती है, वे भगवान् को भुला देते है और एक-दूसरेके खूनके प्यासे बन जाते हैं, तब हम क्या करते है? हिन्दू-मुस्लिम झगड़ेको भी हमें इसी दृष्टिसे देखना चाहिए और वैसा ही करना चाहिए जैसा उस जमाने के उन नेक मुसलमानोंने किया था। हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनोंको मेरी यही सलाह है कि मुसलमानोंसे जो हिन्दू घृणा नहीं करते हैं और जिनके मनमें 'कुरान' के प्रति भी श्रद्धा है, वे तथा वे मुसलमान जो हिन्दुओंसे कोई दुश्मनी नहीं मानते और जो 'गीता' को भी सम्मानकी दृष्टि से देखते हैं, अपने-अपने हृदयका अवगाहन करें। अब वे दिन नहीं रहे जब लोग मिस्रकी गुफाओं या हिमालयकी कन्दराओं में जाकर शान्तिकी खोज करते थे। अब तो वहाँ भी किसीको शान्ति नहीं मिल सकती। वहाँ भी विद्युत प्रकाश उसका पीछा नहीं छोड़ेगा और अगर उससे छुटकारा मिल भी जाये तो उसकी शान्तिमें खलल डालने के लिए हवाई जहाज तो वहाँ जा ही पहुँचेंगे। आज तो हमारी पहुँचके भीतर एक यही शान्तिदायिनी गुफा है। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने हृदयोंकी अन्तर्गुहामें बैठकर प्रभुसे प्रार्थना करें कि वह कमसे-कम हमारे हृदयको निर्मल बनाये रखे। जब आपसमें झगड़नेवाले इन भाइयोंका उन्माद उतर जायेगा तब इन हृदयकी गुफाओंमें निवास करनेवाले लोगोंकी सेवा मांगी जायेगी। ईश्वर समस्त राष्ट्रका और जो लोग इन झगड़ोंसे