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४. भाषण : लो॰ तिलककी पुण्यतिथिके अवसरपर[१]

कलकत्ता
१ अगस्त, १९२५

महात्मा गांधीने हिन्दीमें भाषण देते हुए कहा, बाल गंगाधरने भारतको महामन्त्र दिया कि 'स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।' स्वराज्यसे उनका मतलब था भारतके करोड़ों मेहनतकशोंके लिए स्वराज्य। मेरे दिमागमें इस आह्वानका अर्थ बिलकुल स्पष्ट है : यदि आप भारतको जनताके लिए स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको उसे चरखे और खद्दरके जरिये प्राप्त करना होगा और अपनेको भारतके करोड़ों गरीबों व बुभुक्षितोंके साथ एक कर देना होगा। यदि आप वास्तवमें लोकमान्यकी स्मृतिसे प्रेरणा लेना चाहते हैं और यदि आप वास्तवमें गरीबोंके लिए स्वराज्य चाहते हैं तो यह बूढ़ा लगातार समय-असमय जिस एक चीजकी रट लगा रहा है, आप उसे सुनें और चरखेको अपनाएँ। आप आजसे ही प्रतिज्ञा करें कि आप विदेशी कपड़ेका त्याग करके घरमें कते और हाथसे बुने स्वदेशी कपड़ेको अपनायेंगे।

महात्माजीने भाषण जारी रखते हुए कहा कि अभी कुछ ही दिन पहले आपने लॉर्ड बर्कनहेडके वक्तव्यके उत्तरमें ब्रिटिश मालके बहिष्कारकी घोषणा की थी। इसकी सफलतामें मुझे सन्देह है। यद्यपि में सिद्धान्ततः बहिष्कारके विरुद्ध हूँ, फिर भी यदि आप लोग ब्रिटिश कपड़ेका बहिष्कार करें तो मुझे प्रसन्नता होगी। आप लोग पिछले चार वर्षोसे अपने नेताओंकी सलाहपर चलने में असफल रहे हैं। आपमें से सबने अभीतक चरखे और खद्दरको नहीं अपनाया है। किन्तु, आप चाहें तो आजसे ही अपनी भूलका मार्जन करने के लिए विदेशी वस्तुओंके त्याग और स्वदेशीके प्रयोगको गम्भीर प्रतिज्ञा ले सकते हैं।[२]

[अंग्रेज़ी से]
फाॅरवर्ड, ४–५–१९२५
  1. गांधीजीने लोकमान्य बालगंगाधर तिलककी पुण्य-तिथिके अवसरपर अल्बर्ट हॉलमें आयोजित इस सभामें हिंदी में भाषण दिया था। जे॰ एम॰ सेनगुप्तने अध्यक्षता की थी मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।
  2. इसके बाद गांधीजीने कालेज स्ववेपरकी एक बहुत बड़ी सभामें भी भाषण दिया था; यह भाषण उपलब्ध नहीं है।