- रिपोर्ट वापस भेज रहा हूँ। किशोरलालका[१] निर्णय मुझे बहुत अच्छा लगा है। आशा है तुम दोनों आरामसे हो और तबीयत ठीक होगी।
बापूके आशीर्वाद
- गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १०६८३) की माइक्रोफिल्मसे।
१७४. जाति-बहिष्कार
जिस समाजके अगुआ बिना विचारे केवल मोह, भ्रम, अज्ञान या ईर्ष्यासे प्रेरित होकर व्यक्तियोंका बहिष्कार करते हैं उस समाजमें रहनेके बनिस्बत उसके द्वारा हमारा त्याग कर दिया जाना ही इष्ट है। जो समाज एक भी सत्यनिष्ठ मनुष्यका, त्याग करता है, उसमें अन्य सत्यनिष्ठ व्यक्ति कैसे रह सकते हैं?
यह तो सिद्धान्तकी बात हुई। यद्यपि सिद्धान्तपर सदा अमल सम्भव नहीं होता तो भी हमें उसको याद तो रखना ही चाहिए। जान पड़ता है, आजकल समाजके अगुओंका जुल्म बढ़ रहा है। ऐसे भी पंच पड़े हैं जो अन्त्यजको भोजन कराना भी दोष मानते हैं। उन्हें पंक्तिमें बिठानेवाले और इसमें अपनी सहमति जतानेवाले हिन्दू तो पापी ही समझे जाते हैं। यदि ऐसे लोग पापी माने जायें तब तो हमारे बीच जो-जो पुण्यात्मा हों उन सभीका उनमें शामिल हो जाना ही उचित है।
बहिष्कारको सहना बहुत कठिन है, बहिष्कृत व्यक्ति किसीके यहाँ भोजमें नहीं बुलाया जाता, उसका धोबी और नाई बन्द हो जाता है। फिर डाक्टर भी बन्द कर दिया जा सकता है? अब केवल जानसे मार डालना ही बाकी रहा न? बहिष्कृत सुधारकमें मृत्यु-पर्यन्त अटल रहनेकी शक्ति तो अवश्य ही होनी चाहिए। खरे हिन्दू अन्त्यजोंकी आत्यन्तिक सेवा अपने मरणके द्वारा ही कर सकते हैं। किसीके यहाँ भोजन करनेकी आवश्यकता ही क्या है? हम अपने ही घर स्वयंपाकी बनकर शान्तिसे भोजन क्यों न करें? धोबी यदि कपड़े न धोयें तो हाथसे धो लें। उतने पैसोंकी बचत हुई। हजामत हाथसे कर लेना तो आजकल सामान्य बात हो गई है। लेकिन कन्याका ब्याह कहाँ करेंगे? और पुत्रके लिए कन्या कहाँ ढूँढेंगे? यदि अपनी जातिमें से ही वर या वधू ढूँढनेका आग्रह हो और वह न हो पाये तो संयमित जीवन यापन किया जाना चाहिए। यदि ऐसी शक्ति न हो तो दूसरी जातिमें सम्बन्ध करने के लिए खोज करनी चाहिए। यदि उसमें भी निराश होना पड़े तो जो वस्तु अपरिहार्य है उसके प्रति उदासीन ही रहना चाहिए।
वर्ण तो चार ही है। जाति चार हों या चालीस हजार हों। छोटी-छोटी जातियोंका एक-दूसरेमें मिल जाना तो स्वागतके ही योग्य है। छोटी जातियोंसे हिन्दूधर्मको बड़ी हानि उठानी पड़ी है। जो वैश्य है वह समस्त हिन्दुस्तानकी वैश्य जातिमें कहीं भी सम्बन्ध जोड़नेका प्रयत्न क्यों न करे? ब्राह्मण जातिके अपने समान श्रेणीके
- ↑ किशोरलाल मशरूवाला।