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१७९. भाषण : विशनपुरमें[१]

१३ अक्तूबर, १९२५

उत्तरमें, अन्य बातोंके अतिरिक्त, महात्माजीने यह भी कहा कि स्वागत समितिने पर्याप्त सबतोंके बिना, दरभंगा महाराजाके विरुद्ध आरोप लगाकर अच्छा नहीं किया है। मानपत्रमें यह सब कहना और भी ठीक नहीं लगता। यदि आपको सचमुच कुछ शिकायतें हैं, तो आपको चाहिए कि आप उन्हें दूर करवानेका प्रयत्न करें।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, १६–१०–१९२५
 

१८०. बिहारके अनुभव—२
हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न

पटनासे हम भागलपुर गये। भागलपुरमें एक विशाल सार्वजनिक सभा हुई, जिसमें मुझे हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नपर थोड़े बहुत विस्तारसे बोलना पड़ा।[२] जो लोग इस सवालको लेकर व्यस्त हैं, उन पर मेरा प्रभाव यद्यपि खत्म हो गया है, फिर भी लोग इससे उठनेवाली विभिन्न समस्याओंपर मुझसे बातचीत करते रहते हैं। इसलिए मुझे लगा कि मैं अपने विचार, फिर उनका चाहे जो मूल्य हो, फिर स्पष्ट रूपसे दोहरा हूँ। यहाँ मैं यह एक बात स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि दोनों पक्ष ऐसे मामलोंको भी, जिन्हें बातचीतके जरिये या बल-प्रयोगके द्वारा आपसमें ही निबटाया जा सकता है, बारबार सरकारके पास ले जाते हैं यह सही है अथवा गलत, सो अलग बात है लेकिन इतना जरूर है कि मुझे यह अच्छा नहीं लगता। इसलिए मैंने सभामें उपस्थित लोगोंसे कहा कि चूंकि कोई भी पक्ष समझौतेके लिए तैयार नहीं है, और दोनों ही एकदूसरेसे डरते हैं, इसलिए यही अच्छा है कि सरकारसे बीच-बचाव करनेको कहे बिना, विवादास्पद मामलोंको वे शरीर-बलका उपयोग करके ही तय कर डाल। डरकर पीछ हटना तो कायरता है, और कायरतासे न तो जल्दी समझौता ही हो सकता है और न अहिंसाका मार्ग ही प्रशस्त हो सकता है। कायरता एक प्रकारकी हिंसा ही है, जिसे छोड़ सकना बहुत ही कठिन होता है। हिंसाकी प्रवृत्तिवाले व्यक्तिको तो हिंसा

 
  1. रिपोर्टके अनुसार, बिहारके पूर्णिया जिलेके भीतरी क्षेत्रमें बसे इस महत्वपूर्ण गांवमें आयोजित स्वागत समारोहमें पचास हजार लोगोंका एक अनुशासित समुदाय सम्मिलित हुआ था। विशेष रूपसे बनाई गई दो मील लम्बी सड़कपर बहुतसे हाथियों और घोड़ोंको सजाकर सुन्दर झाँकियाँ निकाली गई थीं। सभामें गांधीजीको अभिनन्दन-पत्र भेंट किया गया था और देशबन्धु स्मारक कोशके लिए चन्दा भी।‌
  2. देखिए "भाषण : भागलपुरकी सार्वजनिक सभामें", १–१०–१९२५।