पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

६. गुजरातका क्या कर्तव्य है?

शायद कुछ लोगोंके मनमें प्रश्न उठता होगा कि मैंने पण्डित मोतीलालजीको जो पत्र[१] लिखा है, उसका अर्थ है गुजरात क्या करे? स्वराज्यवादी दल कांग्रेसपर कब्जा कर ले, इसका मतलब क्या हुआ? क्या गुजरात भी अपना मत बदल दे? अथवा गुजरातकी प्रान्तीय कमेटीको क्या करना चाहिए?

सबसे पहली बात तो यह है कि मैंने केवल अपने विचार ही प्रकट किये हैं। किसीकी ओरसे अथवा किसीके साथ कोई इकरारनामा नहीं किया है। मुझे पूरी आशा है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकमें[२] सभी सदस्य आ सकेंगे और तब वे स्वतन्त्र भावसे अपना मत व्यक्त करेंगे तथा जो प्रस्ताव स्वीकार करेंगे वही ठीक माना जायेगा।

किन्तु मान लीजिए, सदस्यगण मेरे मतको स्वीकार कर लेते हैं। तो इसका इतना ही अर्थ हुआ कि कांग्रेसके प्रस्तावके अनुसार कांग्रेसमें राजनैतिक मामलोंको उठानेपर जो रोक लगी हुई थी वह समाप्त हो जायगी। कांग्रेसके प्रस्तावके कारण स्वराज्यवादियोंको अभी चुप रहना पड़ता है। मेरी सलाह मंजूर हो जानेपर वे अपनी बात कह सकेंगे। देशबन्धुके निधनके कारण और लॉर्ड बर्कनहेडके भाषणके उत्तरमें में ऐसा कौन-सा काम करूँ जो केवल में ही कर सकता हूँ? राजनैतिक मामलोंको फिलहाल कांग्रेससे अलग रखनेकी कल्पना मेरी ही थी। जो इकरारनामा हुआ था वह भी सिर्फ मेरे और स्वराज्यवादी दलके बीच ही हुआ था। उसे इस बन्धनसे मुक्त करनेका कार्य तो मैं ही कर सकता हूँ। इसके बाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी जैसा चाहे, कर सकती है। अगर इस कमेटीके सदस्योंकी एक खासी बड़ी संख्या भी मेरी सलाहका विरोध करे तो वह मेरे पास ही रखी रह जायेगी।

मेरी सलाहको माननेका अर्थ इतना ही हुआ कि जिन प्रान्तोंमें स्वराज्यवादियोंकी संख्या अधिक हो उन प्रान्तोंमें वे प्रान्तीय कमेटियोंकी मार्फत राजनैतिक विषयोंसे सम्बद्ध अपने मनके प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं, और उनपर चर्चा कर सकते हैं। जहाँ समितिमें गुजरातकी तरह अपरिवर्तनवादी अधिक होंगे वहाँ इस परिवर्तनका बहुत असर नहीं पड़ेगा। ऐसी जगहोंमें भी मैं स्वराज्यवादी दलको जितना हो सके, उतना मजबूत बनाना पसन्द करूँगा। यह कैसे सम्भव हो सकता है, सो मैं बंगालमें बैठा-बैठा नहीं बता सकता। हम देखते हैं कि इस दलका असर अंग्रेज अधिकारियोंपर पड़ता है। उस असरका सदुपयोग करना हमारा धर्म है। इस दलमें बहुतेरे स्वार्थ-त्यागी स्त्री-पुरुष है और उनके मनमें देशभक्ति भी पूरी-पूरी है। ऐसे स्त्री-पुरुष चाहे किसी

  1. खण्ड २७, पृष्ठ ४१२–१३।
  2. यह बैठक २२, २३, २४ सितम्बर, १९२५ को पटनामें हुई थी।