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शिक्षित वर्गोंके विषयमें

पूरी तरह संगठित किया जा सकता है; अर्थात् हिंसाकी अपेक्षा इसके लिए उसे ज्यादा जल्दी संगठित किया जा सकता है। क्रोधके अतिरेको आकस्मिक रूपसे यत्र-तत्र फूट पड़नेवाली हिंसा और योजनाबद्ध सामूहिक हिसामें मैं भेद मानता हूँ। यदि कोई भारतको, मान लीजिए, जर्मनीकी तरह सैनिक शिविर बना देना चाहे तो मेरे विचारसे उसमें कई युग लग जायेंगे, किन्तु यहाँकी जनताको संगठित रूपसे अनाक्रामक बने रहने अर्थात् कष्टोंको सहते हुए शान्त रहने की शिक्षा दे सकना अपेक्षाकृत सुगम कार्य है। बम्बई, चौरी-चौरा और अन्यत्र हुई कुछ चूकों के बावजूद १९२१ में हमने यह बात बहुत अच्छी तरह सिद्ध करके दिखा दी थी। लेकिन, मैं यह निस्संकोच भावसे स्वीकार करूँगा कि देशको निकट भविष्यमें सामूहिक सविनय अवज्ञाके लिए संगठित कर सकनेके विषयमें मैं खुद ही निराश हो गया हूँ। इसके कारण बतानेकी यहाँ जरूरत नहीं। लेकिन, मै इतना जानता हूँ कि अगर भारतको सर्वसाधारण जनताके लिए स्वराज्य प्राप्त करना है तो यह सामहिक सविनय अवज्ञाकी क्षमताके विकास के जरिये ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रश्नके अन्तिम हिस्सेसे प्रकट होता है कि प्रश्नकर्त्ताको सर्वसाधारणकी योग्यतामें या तो विश्वास नहीं है या फिर वे उसके सम्बन्धमें अधैर्य से काम ले रहे हैं। हम सर्वसाधारणके सम्पर्कमें आये ही कितने दिनसे है कि उसपर अनुशासनहीन और अत्युत्साही होनेका आरोप लगायें? यह एक ऐसा अपराध है जिसके लिए शायद हम खुद सर्वसाधारणसे कहीं अधिक दोषी है। अपनी बिहार-यात्राके दौरान भी मैं इस बातकी पुष्टि होते देखता हूँ। कार्यकर्त्ताओंने देख लिया है कि मेरा स्वास्थ्य ऐसा नहीं है कि मैं अधिक शोर-गुल और भीड़-भाड़को बर्दाश्त कर सकूँ। वे मेरे स्वागतमें एकत्र होनेवाली भारी भीड़ोंको पहलेसे ही शोरगुल और किसी प्रकारका प्रदर्शन न करने के लिए समझा देते हैं, और यह देखकर मुझे आश्चर्य और सुख होता है कि लोग यहाँ भी बंगालकी ही तरह उनकी बात मानकर तदनुसार व्यवहार कर रहे हैं। जहाँ कहीं भी कार्यकर्त्ताओंने सर्वसाधारणसे जरा भी सम्पर्क स्थापित किया है, उन्हें यही बात देखनेको मिली है।

सर्वसाधारणको संगठित और अनुशासनबद्ध करने के लिए आप क्या कर रहे हैं?

सर्वसाधारणको संगठित या अनुशासनबद्ध करने के लिए मैं या कोई भी जो उठा सकता है वह है निःस्वार्थ-भावसे उसकी सेवा करना और उसकी निःस्वार्थ भावसे सेवा सिर्फ खादी कार्यके जरिये ही सम्भव है।

क्या आपको कांग्रेस संगठनमें बहुतसे अवांछनीय तत्त्वोंके प्रवेश कर जानेका पूरा एहसास नहीं है? अगर है तो आप इस आन्दोलनको उनसे मुक्त करनेके लिए क्या कदम उठा रहे हैं?

इस दुर्भाग्यपूर्ण तथ्यको मैं भली-भांति जानता हूँ। लेकिन यह चीज लोकतान्त्रिक संगठनोंके भाग्यमें ही बदी हुई है। इसलिए मुझसे या और किसी व्यक्तिसे यह पूछना बेकार है कि आप इसके लिए क्या कदम उठा रहे हैं। जो लोग अपने-आपको 'वांछनीय तत्त्व' समझते है, उन सबको कांग्रेस संगठनको शुद्ध बनाये रखने के लिए सम्मिलित प्रयास करना चाहिए।