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शिक्षित वर्गोंके विषय में

और उन सबकी उपेक्षा नहीं कर रहे हैं, जिन्होंने उस नाजुक वक्तपर आपके नेतृत्वमें चलना स्वीकार किया था जब गया-कांग्रेसके बाद स्वराज्यदल आपके खिलाफ लगभग विद्रोह कर उठा था?

मैंने न कांग्रेसको स्वराज्य दलके हाथमें सौंप दिया है और न उसके अथवा किसी और दलके हाथमें उसे सौंपनेका मुझे कोई अधिकार है। अगर कांग्रेसजन स्वराज्यदलके साथ न हों तो वह एक भी दिन काँग्रेसको अपने हाथमें नहीं रख सकता। मुझे उम्मीद है कि कांग्रेसमें रचनात्मक कार्यक्रमका स्थान कभी गौण नहीं होगा। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने सिर्फ इतना ही तो किया है कि कौंसिल कार्यक्रमको रचनात्मक कार्यक्रमके बराबरीका दर्जा दे दिया है और चरखा तथा खादीके कार्यक्रमें संचालनके लिए विशेषज्ञोंकी एक अलग संस्था कायम कर दी है। जबतक कांग्रेस अखिल भारतीय चरखा संघको अपना संरक्षण देती रहेगी, तबतक ऐसा नहीं कहा जा सकता कि मैं कांग्रेससे अलग हो गया है। जैसा कि मैं कह चुका हूँ, उपेक्षा तो मैं किसीकी नहीं कर रहा हूँ। जिनका विश्वास सिर्फ चरखेमें ही है, और जिनका कौंसिलोंपर तनिक भी भरोसा नहीं है, वे अ॰ भा॰ च॰ संघके सदस्य तो अब भी हो सकते हैं।

अगर स्वराज्यदल अपने वादे पूरे करने में विफल रह जाता है तो देशको राजनीतिक मुक्तिके लिए आप चरखे और खादीके अतिरिक्त अन्य किसी भावी कार्यक्रमके विषयमें क्या सोचते हैं?

मुझे नहीं मालूम कि इस प्रश्नमें उल्लिखित वादोंसे प्रश्नकर्त्ताका तात्पर्य क्या है। देशकी राजनीतिक स्वतन्त्रता तो उसके सशस्त्र अथवा सविनय प्रतिरोधके लिए तैयार हो जानेपर ही सम्भव है। सशस्त्र प्रतिरोधकी शक्ति तो दीर्घकालतक दबी-छुपी तैयारीके बाद ही आ सकती है और सविनय प्रतिरोधकी क्षमता उत्तरोत्तर अधिकाधिक लोगों द्वारा अपने भीतर रचनात्मक शक्तिका विकास करनेसे प्राप्त होगी। चंकि मैं मानता हूँ कि भारत अभी कई पीढ़ियोंतक अपने भीतर सशस्त्र प्रतिरोधकी शक्तिका पूरा विकास नहीं कर सकता, इसलिए मैं अपनी सारी आशा और आस्था चरखेकी उस शान्त, अचूक और अमोध क्रान्तिपर लगाये बैठा हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५–१०–१९२५