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विचार करना होता तो मैं निश्चय ही अस्पताल आदि पसन्द नहीं करता। बहुत सारे अस्पतालोंकी आवश्यकताको मैंने कभी स्वीकार नहीं किया है। लेकिन यदि मैं स्वतन्त्र होऊँ तो क्या करूं, इसका तो विचारतक मैंने अपने मनमें आने नहीं दिया। देशबन्धु द्वारा बनाया गया ट्रस्ट मेरे सामने था और मेरा सम्पूर्ण मार्गदर्शन उससे हो जाता था। इसलिए मैंने, यदि उनके अनुयायी पसन्द करें तो स्मारकका हेतु उसीके अनुसार स्थिर करनेको अपना धर्म समझा और तदनुसार दस लाख रुपया इकट्ठा करनेकी दृष्टिसे ही मैं अब बंगालमें हूँ। हालाँकि ट्रस्ट एक वर्ष पूर्व बना था; फिर भी मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि उसमें जो विचार प्रकट किये गये हैं, देशबन्धुके वे ही विचार अन्ततक कायम थे। क्योंकि मकानपर जो कर्ज बचा रह गया था उसके लिए पैसा इकट्ठा करनेके लिए उन्होंने मुझसे मदद मांगी थी। चरखा और खादी सम्बन्धी उनके अन्तकालके विचारोंको जितनी अच्छी तरह मैं जानता हूँ। कहा जा सकता है कि उतनी अच्छी तरह उनकी पत्नीके अलावा कदाचित् और कोई व्यक्ति नहीं जानता। परिपत्र निकालते समय मैंने पहले श्रीमती बासन्ती देवीके विचार जान लिये थे। उसी तरह देशबन्धुके परम सखा और सहयोगी पण्डित मोतीलालजीके विचार और बादमें देशबन्धुके खास अनुयायियोंके विचार भी जान लिये थे। परिपत्र निकालनेका निश्चय इन सब लोगोंके विचार जाननेके बाद ही मैंने किया। इस स्मारकका कार्य मेरे लिए विशेष रूपसे अनुकूल है, इतना मुझे स्वीकार करना चाहिए। स्मारकका कार्य मेरे अनुकूल है, फिर भी पाठक मानेंगे कि उसकी सफलताके सम्बन्धमें मैं तटस्थ हूँ। अखिल बंगाल स्मारकके सम्बन्धमें ऐसा नहीं कहा जा सकता। उसे सफल बनानेके लिए मैं जबर्दस्त प्रयत्न कर रहा हूँ। यह भेद सकारण है। चरखेकी शक्तिके बारेमें लोगोंमें मतभेद है, किन्तु मुझे उसमें अटूट श्रद्धा है। इसलिए तत्सम्बन्धी स्मारकके निर्माणमें खींचतानसे काम नहीं चल सकता। यदि चरखेमें शक्ति है और भारतको उसके प्रति सच्ची श्रद्धा है, तभी मैं देशबन्धुके नामसे उसके लिए द्रव्य पानेकी इच्छा रखूगा। इसीसे जितना सन्तोष मुझे कवि गुरुके हस्ताक्षरोंसे हुआ है उतना ही सन्तोष मुझे भारतभूषण पण्डित मालवीयजीके हस्ताक्षरोंसे हुआ है। मैंने भाई जवाहरलालसे कहा है कि वे अन्य लोगोंसे भी हस्ताक्षरोंके लिए कहें।

अब यह देखना बाकी है कि इस स्मारकके लिए गुजरात कितना चन्दा देता है। मुझे उम्मीद है कि गुजरात अपने लिए शोभनीय रकम देगा। उससे स्मारककी भी श्री वृद्धि होगी।

हमें उम्मीद है कि 'नवजीवन' के पाठक और खादी-प्रेमी चन्दा उगाहे जानेकी राह न देखकर अपना चन्दा स्वयं भेज देंगे। प्राप्तिकी स्वीकृति 'नवजीवन' में प्रकाशित होगी। यह प्रार्थना केवल गजरात अथवा हिन्दुस्तानमें रहनेवाले 'नवजीवन' के पाठकोंसे ही नहीं है बल्कि देशके बाहर रहनेवाले पाठकोंसे भी है।

जात-बिरादरीकी स्थिति

मारवाड़ी भाइयोंका कलकत्तमें सम्मेलन हुआ था। उसमें वे मुझे ले गये थे। वहाँ केवल जाति सुधारकी ही बात थी और उससे सम्बन्धित अनेक प्रश्नोंपर चर्चा