पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्तर नहीं किया जा सकता। यदि उक्त प्रश्नमें छिपा हआ उनका डर धर्म-भेदके कारण हो तो इन स्तम्भोंमें यह बार-बार बताया जा चुका है कि स्वराज्य किसी एक मजहबके लिए नहीं होगा। वह सब धर्मोके लिए होगा और जिनका जन्म भारतमें नहीं हुआ है या जो भारतके अधिवासी नहीं, उनकी भी पूर्ण रूपसे रक्षा की जायेगी-उतने ही पूर्णरूपसे जितनी कि वर्तमान सरकारकी छत्रछायामें होती है, हाँ, यदि आज किसीके साथ अनुचित रूपसे पक्षपात होता होगा तो तब वैसा जरूर नहीं होगा। मेरी कल्पनाका यही स्वराज्य है। अन्तमें वह कैसा होगा यह इस बातपर निर्भर करता है कि आगे चलकर भारतके विचारवान पुरुष क्या करेंगे। भावी भारतका निर्माण गोआवासियोंके हाथोंमें भी उतना ही है जितना कि अन्य किसी जातिके। इसलिए किसीको भी यह पूछनेकी आवश्यकता नहीं कि स्वराज्यके अन्तर्गत उसका क्या होगा, क्योंकि तब सिर्फ बेवकूफ और कायर ही ऐसे होंगे जो राज्यको दयापर आश्रित होंगे। यदि राज्य व्यक्तियोंके अधिकारोंपर आक्रमण करेगा तो हरएक व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रताकी स्वयं ही रक्षा करेगा। जबतक बहुतसे व्यक्तियोंमें इस प्रकारकी प्रतिरोध शक्ति नहीं आती तबतक भारतवर्ष सच्ची स्वतन्त्रता हासिल नहीं करेगा।

अपराध कब अनैतिक नहीं होता?

एक महिला मित्रने मुझे डैन ग्रिफिथ्सके अपराधके सम्बन्धमें कुछ चटपटे सुभाषित भेजे है और वे चाहती हैं कि मैं उनको इन पृष्ठोंमें स्थान हूँ। यहाँ मैं उनमें से कुछ देता हूँ। उन्हें सत्याग्रही मजेसे अंगीकार कर सकते हैं :

आवश्यक नहीं कि राज्यका कानून नीति-सम्मत हो; और अपराधका अनैतिक होना भी आवश्यक नहीं है।
अवैधता और अनैतिकतामें बहुत बड़ा अन्तर है।
सब गैर-कानूनी बातें अनैतिक नहीं होती और न सब अनैतिक बातें गैरमन कानूनी होती हैं।

एक अधिकारीके आदेशपर पेटके बल न रेंगना गैरकानूनी हो सकता है किन्तु यह कौन कह सकता है कि वह अनैतिक भी होता है? बल्कि क्या यह सच नहीं है कि पेटके बल रेंगनेसे इनकार करना गैरकानूनी भले ही हो किन्तु वह ऊँचे दर्जेका नैतिक कार्य होगा? नीचे एक दूसरा ज्ञानवर्द्धक उद्धरण दिया जाता है :

आधुनिक समाज अपने-आपमें अपराधोंका कारखाना है। सेनावादी हत्यारेका मौसेरा भाई है और चोर सट्टेबाजका संगाती।

तीसरा उद्धरण इस प्रकार है :

कानूनकी दृष्टि से जो व्यक्ति अपनी लिप्सा भावनाको समाज द्वारा अमान्य तरीकोंसे तुष्ट करता है वह चोर है। किन्तु सच्चा चोर तो वह व्यक्ति है जो समाजको जितना देता है उसकी अपेक्षा उससे अधिक लेता है। किन्तु समाज उस व्यक्तिको जो उसे चिढ़ाये दण्ड देता है। लेकिन उसे दण्ड नहीं देता जो उसे चोट पहुँचाता है,—अर्थात् वह छोटे-मोटे अपराध करनेवालोंको दण्डित करता है, बड़े अपराधियों को नहीं।