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२२१. तार : रणछोड़लाल पटवारीको

कच्छ मांडवी
३० अक्तूबर, १९२५

दीवान साहब
मोरवी जंक्शन,

विशुद्ध व्यक्तिगत पत्रका[१] दफ्तरी जवाब देखकर चकित। यदि मैं इस छोटी-सी कार्यसमितिकी, जो अपने गठनके समयसे ही बड़ी सावधानीके साथ राजनीतिक मामलोंसे. . . .[२] या काठियावाड़के राज्योंसे दूर रही है, बैठक नहीं कर सकता तो मोरवीसे गुजरने की कोई इच्छा नहीं है।

गांधी

अंग्रेजो तार (जी॰ एन॰ ४१२१) को फोटो-नकलसे।
 

२२२. भाषण : माण्डवीमें[३]

३१ अक्तूबर, १९२५

खतरा कौन उठाता है और किसलिए उठाता है? व्यभिचारके लिए, स्त्रीके लिए और धनके लिए लोग खतरा उठाते हैं। लेकिन यह तो कुएँमें कूदनेके साहसके समान है। साहस तो भवसागर पार करने के लिए, पुरुषार्थके लिए, आत्मदर्शनके लिए किया जाना चाहिए। व्यापार तो ऐसा ही किया जाये जिसमें किसीके प्रति अपराध न हो, जिसमें किसीको कौड़ी भी न लेनी पड़े। मेरे साथ बैठनेवाले, कलतकके मेरे साथी कितने ही करोड़पतियोंको मैंने "शाह आलमके सगे सम्बन्धियों" की तरह बाजारोंमें भीख माँगते देखा है।[४] तब जो वस्तु क्षणिक है, उसके लिए इतना प्रयत्न किसलिए, छल और चोचले किसलिए? साहस तो हमें परमात्माकी महिमा देखने और उसके गुण गाने में दिखाना चाहिए। परमात्माकी लीला निहारने में दीवाना बनना ही सच्चा साहस है। इस गगनमें चमकते अनेक सितारे किसके प्रकाशका विस्तार करते है, इसकी शोधमें अनेकों जन्म चले जायें तो वे सब सार्थक हैं। श्रीमद् राजचन्द्रने मृत्युके समय असह्य दुःख भोगा लेकिन उन्हें उस दुःखका विचार नहीं

 
  1. देखिए "पत्र : रणछोड़लाल पटवारीको", २२–१०–१९२५।
  2. यहाँ एक शब्द स्पष्ट नहीं है।
  3. महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत।
  4. गुजरातके पारसी कवि बहरामजी मलवारी द्वारा रचित एक कवितासे।